Book Title: Bhagvana Mahavira
Author(s): Tulsi Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 55
________________ ४४/भगवान् महावीर ० गंध में आसक्त मत बनो। ० रस में आसक्त मत बनो। ० स्पर्श में आसक्त मत बनो। आसक्ति और उसके निमित्तों से बचना ही अपरिग्रह है। अहिंसा की सिद्धि समिति और गुप्ति से होती है। १. ईर्या समिति-सावधानीपूर्वक चलना। २. भाषा समिति-सावधानीपूर्वक बोलना। ३. एषणा समिति-सावधानीपूर्वक आहार लेना और करना। ४. आदान-निपेक्ष समिति-सावधानीपूर्वक उपकरण का प्रयोग करना। ५. उत्सर्ग समिति-देहिक मलों का सावधानीपूर्वक विसर्जन करना। ६. मन की गुप्ति-मन की प्रवृत्ति का निरोध । ७. वचन की गुप्ति-मौन । ८. काया की गुप्ति-शरीर की प्रवृत्ति का निरोध । गृहस्थ धर्म भगवान् ने मुनि-धर्म की स्थापना के बाद गृहस्थ धर्म की व्याख्या की। भगवान् ने कहा-'गृहस्थ, परिवार, समाज, राज्य आदि दायित्वों से मुक्त नहीं हो सकता, फिर भी इन अणुव्रतों का अवश्य पालन करे १. बड़ी हिंसा का त्याग। २. बड़े असत्य का त्याग। ३. बड़ी चोरी का त्याग। ४. स्वदार-संतोष। ५. इच्छा का परिमाण-परिग्रह की सीमा।। गृहस्थ अणुव्रतों की पुष्टि के लिए इन शिक्षा-व्रतों का अभ्यास करे१. दिशाओं में जाने की मर्यादा कर उससे बाहर जाकर हिंसा आदि का त्याग। २. सीमा के उपरांत वस्तुओं के उपभोग का त्याग । ३. अनावश्यक वस्तुओं के उपयोग का त्याग । ४. समता का अभ्यास । ५. दैनिक प्रवृत्ति की सीमा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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