Book Title: Bhagvana Mahavira
Author(s): Tulsi Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 37
________________ २६/भगवान् महावीर आवश्यक है। उपवास उसी शरीर-विसर्जन की साधना का एक अंग है। उपवास करने वाला शरीर के बंधन से मुक्त होकर आत्मा की सन्निधि में चला जाता है। कुमार वर्द्धमान ने आत्मा की सन्निधि प्राप्त कर घर का त्याग किया। जिसे आत्मा की सन्निधि प्राप्त नहीं होती वह घर को कैसे त्यागेगा? ___परिवार के लोग महोत्सव मना रहे थे। युवतियां मंगल गीत गा रही थीं। मांगलिक बाजे बज रहे थे। मंगल-पाठक मंगल-मन्त्रों का उच्चारण कर रहे थे। वृद्ध महिलाएं आशीषं दे रही थीं। बाहर से तुमुल कोलाहल हो रहा था। कुमार आत्मा के अंचल में अकेले बैठे थे-शांत, मौन और कोलाहल से सर्वथा दूर। कुमार शिविका में बैठ ज्ञातषण्ड' वन में पहुंचे। नन्दिवर्द्धन और सुपार्श्व उनके साथ थे। हजारों-हजारों की भीड़ उनके पीछे-पीछे चल रही थी। कुमार शिविका से उतरकर अशोक वृक्ष के नीचे गए। वहां उन्होंने गृहस्थ का वेश उतारा, निर्ग्रन्थ का रूप स्वीकार किया। समूची परिषद् शांत होकर एकटक कुमार की ओर निहार रही थी। गीत-वाद्य बंद हो गए। दिशा का हर अंचल नीरव और शांत हो गया। सिर का लुंचन करने के पश्चात् कुमार ईशानकोण की ओर मुंह कर खड़े हो गए। उनकी आकृति पर प्रसन्नता फूट रही थी। उनके ललाट पर अलौकिक आनन्द की रेखाएं खिंच रही थीं। समूचा वातावरण आनन्द और उल्लास से भर गया। कुमार की दोनों अंजलियां सम्पुट हो गईं। णमो सिद्धाणं' कर उन्होंने सिद्ध आत्मा को नमस्कार किया। मोक्ष के प्रति पूर्ण समर्पित होते ही उनके अहंकार और ममकार विलीन हो गए। उनके अन्त:करण में इस समता-संकल्प की प्रतिष्ठा हो गई-'मेरे लिए सर्व पाप-कर्म (राग-द्वेष) अकरणीय है।' विषमता का मूल-राग-द्वेष है। वही पापकर्म है। उसका विसर्जन करने वाला ही सही अर्थ में निर्ग्रन्थ बनता है-ग्रन्थियों से मुक्ति पाता है। क्षत्रियकुंडपुर की जनता के देखते-देखते कुमार वर्द्धमान अब श्रमण वर्द्धमान हो गए। अब राज्य से उनका सम्बन्ध छूट गया। वे ऐसे राज्य से जुड़ गए, जहां शासन और शासित का भेद नहीं है। उनका घर से सम्बन्ध टूट गया। वे ऐसे घर में प्रवेश पा गए, जहां कभी कष्ट नहीं होता। उनका परिवार से सम्बन्ध Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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