Book Title: Bhagvana Mahavira
Author(s): Tulsi Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

View full book text
Previous | Next

Page 33
________________ २२/भगवान् महावीर समय एक दूत आया। उसने कलिंग-नरेश जितशत्रु का संदेश उन्हें दिया। जितशत्रु ने अपनी पुत्री यशोदा से कुमार वर्द्धमान के विवाह का प्रस्ताव किया था। उन्हें इस आकस्मिक प्रस्ताव पर आश्चर्य हुआ। वे आज इसी विषय पर चर्चा कर रहे थे। पता नहीं जितशत्रु ने उनकी भावना को कैसे जान लिया। माता-पिता जानते थे कि कुमार विषयों से विरक्त हैं। उनका मन आत्मलीन है। उनकी चेतना भीतरी जगत् में ही सक्रिय है। फिर भी राजकुल की परम्परा को चलाना है। कुमार का विवाह करना होगा। उन्होंने वह विवाह का प्रस्ताव स्वीकार कर दूत को विसर्जित कर दिया। _ महाराज सिद्धार्थ ने कुमार वर्द्धमान को बुलाकर विवाह का प्रस्ताव उनके समाने रखा। कुमार बड़े असमंजस में पड़ गए। उनका अन्त:करण ब्रह्म में लीन हो रहा था। वे एकत्व की साधना कर रहे थे। समुदाय में रहते हुए अकेले में रहने का अभ्यास कर रहे थे। विवाह में एक से दो होना होता है। चेतना को बाहर की वस्तु के साथ जोड़ना होता है। वे ऐसा नहीं चाहते थे। जल में कमल कुमार वर्द्धमान राजप्रासाद में रहते थे। समृद्धि और ऐश्वर्य। परिवार और परिकार। सब प्रकार की सुविधाएं, पर उनका मन इन सबसे ऊपर-ऊपर चल रहा था। उनकी दृष्टि भीतर की गहराइयों में जा रही थी। उनकी सारी चेष्टाएं और सारी इन्द्रियां एक ही दिशा में गतिशील थीं। वह दिशा थी आत्मा। चेतना जब सुप्त होती है तब बाहरी वस्तुएं रसभरी प्रतीत होती हैं और वे इन्द्रियों को अपनी ओर खींचती हैं। चेतना जब जागृत हो जाती है तब बाहरी वस्तुएं जैसी हैं, वैसी ही लगती हैं, फिर वे इन्द्रियों को अपने जाल में फंसा नहीं पातीं। ___कुमार की चेतना जागृति के मध्यबिंदु पर पहुंच चुकी थी। वे जल में कमल की भांति निर्लिप्त जीवन जी रहे थे। उनका अपना राज्य था, अपना वैभव था और अपना परिवार था। वे अपने लक्ष्य की परिधि में चल रहे थे। दूसरों को बड़ा विस्मय हो रहा था। वे बहुत सादा भोजन करते । आस-पास के लोग सोचते-कुमार ने राजकुल में जन्म लेकर क्या किया, जो राजकुलोचित भोजन नहीं करते? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110