Book Title: Bhagvana Mahavira
Author(s): Tulsi Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 21
________________ १० / भगवान् महावीर जन्म दिया। अद्भुत था वह समय और अद्भुत था वह शिशु । माता प्रफुल्ल पिता प्रफुल्ल, परिवार प्रफुल्ल और प्रकृति प्रफुल्ल । चारों ओर प्रफुल्लता ही प्रफुल्लता । जन्म कोई आकस्मिक घटना नहीं है। वह नियति की प्रलम्ब श्रृंखला की एक कड़ी है। हमें लगता है कि जन्म लेने वाला अकेला आता है और यह सच भी है कि उसकी मुट्ठी में कुछ भी नहीं होता, पर सूक्ष्म शरीर में और उसके मस्तिष्क में बहुत कुछ होता है । यह आज का शिशु तीस वर्ष बाद होने वाला महावीर है । कोई भी व्यक्ति एक दिन में महावीर नहीं बन जाता । पराक्रम के बिन्दु संचित होते-होते सिन्धु का विराट् रूप लेते हैं । महावीर के पीछे भी पराक्रम के संचय की एक विशाल परम्परा है । राजकुमार त्रिपृष्ठ पुराने जमाने की बात है । पोतनपुर में प्रजापति नाम का राजा था। उसके दो पुत्र थे-अचल और त्रिपृष्ठ । एक दिन पोतनपुर की राजसभा में नृत्य का आयोजन था । राजा, राजकुमार और सभासद् सभी बड़ी तन्मयता से उसे निहार रहे थे । नर्तक के कौशल पर सब मुग्ध थे । उस समय एक आदमी आया । सबके स्वर्गीय आनन्द को भंग करता हुआ सीधा राजा के पास पहुंचा। राजा ने खड़े होकर उसका स्वागत किया और नृत्य के कार्यक्रम को स्थगित कर उसका सन्देश सुनने लगा । राजकुमार त्रिपृष्ठ को यह बहुत बुरा लगा। उसने अपने सचिव से दूत का परिचय पूछा। सचिव ने कहा - 'यह प्रति वासुदेव अश्वग्रीव का दूत है।' 'दूत का इतना सम्मान कैसे?' राजकुमार ने जानना चाहा। 'यह हमारे स्वामी का दूत है' - सचिव ने उत्तर में कहा । राजकुमार मौन हो गया । दूत राजा को अश्वग्रीव का सन्देश देकर जाने लगा तब कुमार ने कहा - 'दूत ! इस बार मैं तुझे क्षमा करता हूं। आगे कभी भी आयोजन के बीच आकर रंग में भंग मत करना।' कुमार की कड़ी फटकार से दूत सहम गया। उसकी ओजस्वी वाणी ने उसे बोलने का अवसर नहीं दिया । वह मन ही मन जल उठा। उसने अश्वग्रीव के पास जाकर अपने कार्य का विवरण दिया और साथ-साथ तिरस्कार की कहानी भी सुना दी। अश्वग्रीव दूत की For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International

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