Book Title: Bhagvana Mahavira
Author(s): Tulsi Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 24
________________ गृहवास के तीस वर्ष/१३ के बाद सोना नहीं चाहिए। देवी को यह बात ज्ञात थी इसलिए उसने शेष रात जागृति में ही बिताई। सूर्य की रश्मियां भूमि के सुदूर अंचलों तक फैल गई। सब लोग अपने-अपने काम में लग गये। महाराज सिद्धार्थ सभा-मंडप में विराजमान हो गये। देवी त्रिशला भी वहीं बैठ गई। महाराज ने कर्म-सचिव को बुलाकर कहा-'अष्टांग-निमित्त जानने वाले स्वप्न पाठकों को आमंत्रित करो।' कर्म-सचिव ने महाराज की आज्ञा शिरोधार्य की और उन्हें आमंत्रित किया। वे तत्काल राजकीय सभा-मंडप में पहुंचे। महाराज ने सम्मानपूर्वक उन्हें बिठाया और देवी के स्वप्नों की बात कही। - स्वप्न-पाठकों के दल ने उस पर विचार किया। फिर दल के नेता ने कहा- 'देवी ने महत्त्वपूर्ण स्वप्न देखे हैं। यह असाधारण घटना है। देवी पुत्ररत्न को जन्म देगी। वह चक्रवर्ती होगा।' मेरा पुत्र चक्रवर्ती होगा'- इस कल्पना से ही देवी का मुख कमल की भांति रक्ताभ हो गया। महाराज के मुख पर हर्ष की स्वर्णिम रेखाएं खिंच गईं। संभावना का वेग घटना के वेग से अधिक शक्तिशाली होता है-इस सचाई को उस समय दम्पति के मुख-मंडल पर सहजता से पढ़ा जा सकता था। महाराज सिद्धार्थ ने वैशाली के गणतन्त्र की ओर दृष्टि डाली, फिर चक्रवर्ती के साम्राज्य पर। साम्राज्य बहुत विशाल और बहुत ही वैभवशाली होता है, पर गणतन्त्र की सुषमा उसमें नहीं होती। सिद्धार्थ गणतन्त्र के बड़े समर्थक थे, वे उसका विकास चाहते थे। वे साम्राज्य नहीं चाहते थे, भले ही उसका वैभव बड़ा हो पर उसमें आदमी बड़ा नहीं होता। गणतन्त्र आदमी को बड़ा बनाने का प्रयत्न है। वह आदमी की स्वतंत्रता को बनाए रखने का प्रयत्न है। जिस मूल्यों की स्थापना के लिए गणतन्त्र को विकसित किया गया, क्या उन्हीं मूल्यों का विघटन मेरे पुत्र के हाथों होगा? महाराज सिद्धार्थ एक अज्ञात उलझन के भंवर में फंस गए। स्वप्न-पाठक स्वप्नों की सूक्ष्मताओं पर मनन कर फलादेश बता रहे थे। स्वप्न-पाठकों के प्रवक्ता ने कहा-'महाराज ! आप क्षमा करें। हमने बताया था कि आपका पुत्र चक्रवर्ती होगा। पर सूक्ष्मता में जाने के बाद उसमें Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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