Book Title: Bhagavati Jod 07
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati
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४४. पुढविक्काइया, भेदो चउक्कओ जाव वणस्सइकाइयत्ति।
(श. ३४/५०)
४४. पृथ्वीकायिक आदि दे,
___ जाव चउक्क भेद करि कहिवा रे । जाव वनस्पतिकायिका, एतला लगेज लहिवा रे ।। ४५. परंपरोत्पन्न अपज्जत्ता, प्रभु ! सूक्ष्म पृथ्वी जंतो रे ।
ए रत्नप्रभा पृथ्वी तणां, पूर्व नै चरिमंतो रे ।। ४६. समुद्घात मारणांतिकी, करै करीनै जेहो रे ।
जेह भविक जे जीवड़ा, योग्य ऊपजवा तेहा रे ।। ४७. रत्नप्रभा पृथ्वी तणां, जाव पश्चिम चरिमतो रे ।
अपज्जत्त सूक्ष्म महीपणे, जेह ऊपजे जंतो रे ॥ ४८. इम इण अभिलापे करी, जिम कह्यो प्रथम उद्देशो रे ।
जाव लोक चरिमांत ही, इहां लगै सुअशेषो रे ।।
४५. परंपरोववन्नगअपज्जत्तासुहमपुढविक्काइए णं भंते !
इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए पुरथिमिल्ले चरिमंते ४६,४७. समोहए, समोहणित्ता जे भविए इमीसे रयणप्प
भाए पुढवीए पच्चत्थिमिल्ले चरिमंते अपज्जत्तासृहुमपुढविकाइयत्ताए उववज्जित्तए?
४८, एवं एएणं अभिलावेणं जहेब पढमो उद्देसओ (३४।२-३२) जाव लोगचरिमंतो त्ति ।
(श. ३४१५१) ४९, कहि णं भंते ! परंपरोववन्नगबादरपूढविक्काइयाणं
ठाणा पण्णत्ता ? ५०. गोयमा ! सट्ठाणेणं अट्ठसु पुढवीसु ।
४९. हे भगवंत ! किहां कह्या, परंपरोत्पन्न जानो रे।
पर्याप्तक बादर जिके, पृथ्वीकाय नां स्थानो रे? ५०. जिन कहै स्व स्थाने करी, पृथ्वी अष्ट विषेहो रे।
इत्यादिक पूर्वे को, तिमहिज कहिवं तेहो रे ।। ५१. इम इण अभिलापे करी, जिम प्रथम उद्देशे सारो रे । जाव तुल्यस्थितिका प्रमुख जे, सेवं भंते ! बे वारो रे।।
॥इति ३४११॥३॥ ५२. इम शेष पिण अष्ट उद्देशका, जाव अचरम लगेहो रे।
णवरं इतरो विशेष छै, सांभलजो चित देहो रे ।। ५३. अनंतर नां उद्देशका, अनंतर सरीखा कहिवा रे।
परंपर नां उद्देशका, परंपर सरीखा लहिवा रे ।। ५४. चरम अने अचरम अपि, एवं चेव कहेहो रे । इम ए ग्यार उद्देशका,
प्रथम एकेंद्रि श्रेणि शतकेहो रे ।। ५५. चउतीसम अंतर शत प्रथम,
__ च्यार सय नै नय्यासीमी ढालो रे । भिक्ष भारीमाल ऋषिराय थी,
'जय-जश' मगलमालो रे॥ ॥इति ३४।११४-११॥
५१. एवं एएणं अभिलावेणं जहा पढमे उद्देसए (३४।३३-४१) जाव तुल्लट्ठितीयत्ति ।
(श. ३४१५२) सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति। (श. ३४।५३) ५२. एवं सेसा वि अट्ट उद्देसगा जाव अचरिमो त्ति,
नवरं५३. अणंतरा अणंतरसरिसा, परंपरा परंपरसरिसा,
५४. चरिमा य अचरिमा य एवं चेव । एवं एते एक्कारस उद्देसगा।
(श. ३४।५४)
*लय : इन्द्र कहै ममिराय ने * भगवती और
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