Book Title: Bhagavati Jod 07
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati
View full book text
________________
१३. जे तिमज कहियो सहू, विशेष रहित विचार । सोलं ही गमक विषे, जाव अनंती वार ॥ शत पणतीसम पेख | दाख्या जिन वच देख ॥ ।। इति ३५।१।२।
१४. सेवं भंते! स्वाम जी, द्वितीय उद्देशक अर्थ ए.
*सूरीजन सांभलिये महाजुम्मा | (ध्रुपदं )
१५. अप्रथम समय कडजुम्म
कम्मज एगिदिया भगवंत ! किहां थकी उपने छे आवी ?
गुणवंत रे ||
वा० - इहां अप्रथम कहितां प्रथम समय वर्ज ने समय जेहने एकेंद्रियपण ऊपना नैं दोय आदि समय तेहीज कृतयुग्म कृतयुग्म एकेंद्रिय हे भगवन ! किहां थकी ऊपजै ? इत्यादि ।
,
महा जुम्मा,
१६. जिन कहै ए सामान्य करी ने एकेंद्रिय आख्यात | प्रथम उद्देशे सो तिमहिज कहिवो विख्यात रे ।। १७. जाव कलियोग-कलियोग लगे, जे जाव अनंती वार । अपनों से भंते! स्वामी, ए तृतीय उद्देश उदार रे ।। ।।३५।१।३।।
१८. चरम समय कडजुम्मकडजुम्मज, एकेंद्रिया भगवंत ! किहां थकी उप आवी ? गोयम प्रश्न सुतंत रे ।।
वा० - इहां चरम समय शब्दे करी एकेंद्रिय नैं मरण समय विचारयो । तेह परभव नां आउखा थकी पहिला हीज समय नैं विषे वर्त्तमान ते चरम समय संख्याये करी । एतले चरिम समय ते मरिवा नुं समय वांछघो। ते मरण समय माटे परभव नुं प्रथम समय जाणवूं । कृतयुग्म कृतयुग्म एकेंद्रिय हे भगवन ! किहां थकी ऊपजै ?
१९. इम जिम प्रथम समय एकेंद्रिय उद्देशक आख्यात | तिम चरम समय एकेंद्रियोद्देशक,
कहिवो ए अवदात ||
वा० - तिहां अधिक उद्देशक अपेक्षाये दस नानात्व कह्या । इहां पिण तेह तिमज कहिवा प्रथम समय अन चरम समय नैं समान स्वरूपपणां थकी ।
२०. णवरं देवा ऊपजै नांही, चरम समय एकेंद्रिय मांय । तेजोलेश्या न संभवे ते माटै,
तेजोलेशी एकेंद्रिय न पूछाय ॥ २१. शेष तिमज कहियो सगलोही, सेवं भंते! स्वाम । पणतीसम शत तुर्य उद्देशक अर्थ अनोपम आम ॥
।।३५।१।४।।
*लय आधाकर्मी थानक मांहि
Jain Education International
१२. से सब सव्वं निरवसेस सोलस व गम जा तो। (श. ३५।२३ ) (. ३५२४)
१४. सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति ।
१५. अपढमसमय कडजुम्मएगिदिया णं भंते! कओ उववज्जंति ?
बा०-- 'अपढमसमय कडजुम्मकडजुम्मएगिंदिय' त्ति इहाप्रथमः समयो येषामेकेन्द्रियत्वेनोत्पन्नानां द्वघादयः समयाः, ( वृ. प. ९६८ ) १६. एसी जहा पढमुद्देसो सोलसहि वि जुम्मेसु तहेव नेयब्यो
१७. जाय कलियोगकलियोगता जाव अनंतवृत्ती
(म. २५/२५ ) सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति । (श. ३५।२६) १८. चरिमसमय जुम्मम्मएनिदिया णं भंते! जो उववज्जंति ?
बा० चरमसम्म जुम्मएगिदिय' ति इह परमसमयशब्देनकेन्द्रियाणां मरणसमयो विवक्षितः स च परभवायुषः प्रथमसमय एव तत्र च वर्तमानाश्चरमसमयाः सङ्ख्यया च कृतयुग्मकृतयुग्मा ये एकेन्द्रियास्ते तथा (बृ. प. ९६९)
१९. एवं जब पदमसमपसओ,
वा०-- तत्र हि अघिकोद्देशकापेक्षया दश नानात्यान्युक्तानि इहापि तानि तथैव समानस्वरूपत्वात् (बृ. प. ९६९ ) २०. नवरदेवा न उचचजयंति वेठलेस्सा न पुष्यि ज्जंति,
२१. सेसं तव ।
For Private & Personal Use Only
सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति ।
(श. २५।२७) (स. ३५।२० )
श० ३५, उ० १, ढा० ४९२ ४०९
www.jainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498