Book Title: Bhagavati Jod 07
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 483
________________ नियंठा नीं जोड़' बृहा चढाय । जाय ।। मिट भेव ॥ १. अनंत चोबीसी हूं नमूं, मस्तक हाथ संजम पालुं निरमलो, व्यं विधन सर्व २. नेयठा संजया निरमला, भाव्या भाख्या भगवंत देव | सूत्र भगोती सार है. सतक पचीस में ३. राजग्रही नगरी पूछघो गोतम स्वाम नेयठा संजया किण विधे, भाखो भगवंत नाम ॥ ४. नेवठा संजया तेहूनां छतीस - छतीस दुवार । विवरा सुध परगट करूं, ते सुणज्यो सुणज्यो विस्तार || मझे, ढाल : १ (देशी डाभ मूंजादिक नीं डोरी ) १. पण्णवण वेद राग कल्प चरण, पडिसेवणा नाम तीर्थ लिंगकरण । दसमो शरीर क्षेत्र में काल, तेरमो गति पदवी थित रसाल ॥ २. संयम मानकरी अल्पा बहुत विचार, पनरमो निकासे पज्जवा दुवार । योग उपयोग कषाय लेस, बीसमो परिणाम थित कहेस ॥ ३. कर्म बंधे वेदे उदेरे, उवसंपज्जणा सन्ना आहार भव फेरे । आगरिसथित अंतर समुद्घात खेत, ४. हिवं नेयठां फूसणा भाव पूर्व प्रज्या अल्पबहुत समेत ॥ आण रा भेद ते सुणजो उमेद | पुलाग बुकस पडिसेवणा कुसीलकसाय, निग्रंथ स्नातक कह्यो जिणराय ॥ ५. यां छहूं ₹ ₹ इ महाव्रत पंच, मांहे कर्म तणों छे संच । खेत-धान ज्यूं कहीजे पुलाग, बुकस बल्हे पढ़ो ज्यूं लाग ॥ ६. पडिसेवणा ते साल- ढिग कीधो, कषायकुशील ते उफल लीधो । निग्रंथ नेयठो ते छड़िया चावल जेम, स्नातक धोय उजल कीधो एम ॥ सगलेइ सरीबो, तुस फीको । कचरा करने कचरो अलगो कोधां धान चोखो, ते किविध खाए जोखो || ७. धान-कण Jain Education International १. भगवती सूत्र के पचीसवें शतक में 'नियंठा' एवं 'संजया' का प्रकरण है। जयाचार्य ने भगवती की जोड़ का निर्माण करते समय पचीसवें शतक की भी विस्तृत जोड़ की है। जयाचार्य की अन्य रचनाओं में दो स्वतन्त्र रचनाएं हैं- १. नियंठा नीं जोड़, २. संजया नीं जोड़। इनका आधार भी भगवती का पचीसवां शतक ही है । जयाचार्य ने ये दोनों जोड़ें मुनि अवस्था में वि० सं० १८७९ में लिखीं । पचीसवें शतक से सम्बन्धित होने के कारण इन दोनों रचनाओं को परिशिष्ट में दिया गया है । For Private & Personal Use Only नियंठा नीं जोड़, ढा० १ ४६५ www.jainelibrary.org

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