Book Title: Bhagavati Jod 07
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

View full book text
Previous | Next

Page 490
________________ १६. छहं नेयठा वर्तमान प्रज्या आसरी, सिय अस्थि सिय नस्थि जाण । हो तो जघन एक दोय तीन हुवै, उतकष्टा ऊला तीन प्रतक सौ पिछाण ।। १७. कषायकुसील वाला प्रतक सहस हुवे, एक सौ बासठ निग्रंथ एन । उपसमश्रेणी चोपन कह्या, एक सौ आठ सनातक चैन । १८. पूर्व प्रज्या आश्री जी, पुलाक निग्रंथ दोय । सिय अत्थि सिय नत्थि होवै तो, जघन एक दोय तीन होय ।। १९. उतकष्टा पुलाक प्रतक सहंस जाणजो, निग्रंथ प्रतक सौ भाल । सनातक जघन उतकष्टा कह्या जी, प्रतक कोड़ संभाल ।। २०. बुकस पडिसेवणा जघन उत्कष्ट थी, प्रतक सौ कोड़ विचार । कषायकुसील प्रतक सहस कोड़ है, जघन उतकष्टा धार ।। २१. सर्व थोड़ा निग्रंथ कह्या जी, तिण सूं पुलाक संख्यात । सनातक संख्यातगुणा कह्या, बुकस संख्यातगुणा विख्यात ।। २२. तिण सूं संखेजगुणा पडिसेवणा रा, संखेजगुणा कषायकुशील रा जाण । ए छतीसू इ दुवार प्रभु कह्या जी, ज्ञानी वचन प्रमाण । २३. भगोती सूत्र शतक पचीसमें जी, छठे उदेशे भाव । जोड़ कीधी नेयठा तणी जी, चतुरां रै चित चाव ।। २४. समत अठारे गुण्यासीये जी, भाद्रवा बिद छठ गुरुवार । भव-जीवां ने समझायवा, जोड़ कोधी सहर पीपाड़ ।। ॥ इति नियंठा नी जोड़॥ ४७२ भगवती जोड़ Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498