Book Title: Bhagavati Jod 07
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 491
________________ ४. इत्तर उत्कष्टो १. संजया कहै, समायक संजया भगवंत किणविध सुण वच्छ गोतम ! जिण २. पांच परुपीया, छेदोपस्थापनी परिहारविशुद्ध सुखमसंपराय कह्यो, वले जथाख्यात ३. समायक चारित्र रा भेद दोय छै, इत्तरीय आव ते तो बावीस तीर्थंकर नें, वले महाविदेह मझम को कारण साढा छह मास विमास || ५. छेदोपस्थापनीय नां दो भेद छं, अतिचार सहित ऋषभ महाबोर र वार । तेवीसमा रा आव चोवीसमा मझे, स्वारे नहीं अतिचार ।। ६. तप करवा पेठो नैं तपकर नोकल्यो, ए पडिहारविसुध रा दोय भेद । अठार वरसां लग जाणजो, तप करें उमेद ॥ जघन दिन सात नों, नौं, छह मास आण , ए दोष भेद छे, जाण । ॥ ७. संकिले समाणे पड़तो उपशम श्रेणी यो विसुधमाण ए क्षपक श्रेणी चडतोविख्यात । सुखमसंपराय नां, हिवे आगे सुणां जयाख्यात ।। ८. जथाख्यात नां दोय भेद छद्मस्थ केवली तथा उपसंत नैं खोण पण्णवण दुबार पिछाण || तथा अवेदी हुवे तो उपसंत खोण । उपसंत खीण वेदी प्रवीण ॥ है, ए पेहलो ९. सामायक छेदोपस्थापनी ने वेद तीन है, परिहारविशुद्ध में वेद दोय छे, आगे संजया नीं जोड़ Jain Education International बहा का ? ढाल : १ भाखो आछी वचन रीत अमोल | अडोल ॥ सूर । गुणपूर ॥ आव । ने चित चाव ॥ च्यार मास । (देशी राधा प्यारी हे लेवो नीं झखोलो ठंडा नीर नों) सुध पाले ने धारे ते ऊधरे, १. प्यार संजया सरागी का जयाख्यात उपसंत में खीण, जिणंद मोरा हो । आग्या सहीत पुरुष प्रवीण, जिणंद मोरा हो । भलो ज्ञान बतायो जिणराज नों || ( ध्रुपदं ) २. द्विकल्पी पहला बेहला तीर्थकर तगां अट्टिकल्प बावीसां नां जाण । जिन थिवरकल्पी ने कल्पातीत छै, समायक में पांचू कल्प पिछाण || ३. छेदोप० परिहारविसुद्ध में, ट्टि जिन थिवर कल्प वदीत । सुखमपराय ने जथाख्यात में, ट्रि अट्ठि नं कल्पातीत || ४ दोय चारित्र में नेयंठा ऊला च्यार छे, दोयां में कषायकुशील होय । जथाख्यात चारित मांहे जिन कह्या, निग्रंथ सनातक ५. दोय संजया मूलगुण उत्तरगुण मझे, दोष लगावे से तीन संजया दोष लगावे नहीं, ए पडिलेवणा छठो दुबार कहवाय ॥ दोय ॥ ताय । For Private & Personal Use Only संजया नीं जोड़, ढा १ ४७३ www.jainelibrary.org

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