Book Title: Bhagavati Jod 07
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati
View full book text
________________
१३. सामायकपणों छांडी च्यारां में जाय, छेदोप० सुखम० असंयमी थाय ।
तथा संजमासंजम में जावै, छेदोप० एवं पिण परिहार थावे ।। १४. परिहारपणों छोड़ी पावै दोय, छेदोप० असंयम होय ।
सुखमसंपराय छांडी सामायक थाय, छेदोप० जथाख्यात असंयम में जाय ।। १५. जथाख्यात छांडी पावै तीन, सुखम० असंयम मोक्ष प्रवीण ।
तीन संजया सन्नानोसन्नोवउत्ता, आगै नोसन्ना भगवंता॥ १६. च्यार संजया करै आहार, जथाख्यात भजना विचार ।
दोय संजया जघन भव एक, उतकष्टा आठ विशेष ।। १७. परिहार. सुखम० जथाख्यात, जघन एक भव थात ।
उतकष्टा तीन विचारो, ए सतावीसमो भव दुवारो ।। १८. पाचूं संजया एक भव आश्री जोय, जघन एक बार आवै सोय ।
उतकष्टा सामायक प्रतक सौ बार, छेदोप० एक सौ बीस वार विचार ।। १९. परिहार० तीन सुखम० च्यार, जथाख्यात आवै दोय वार ।
घणां भवां आश्री जघन दोय वार, हिवै पांचं उतकष्टा धार ।। २०. सामायक बोहीतर सौ वेला आवै, छेदोप० नव सौ साठ वेला थावै ।
परिहार० सुखम. सात नव ख्यात, पांच वार आवे जथाख्यात ।। २१. थित एक जीव आश्री पांचां री, जघन एक समो कही ज्यांरी ।
सामायक छेदोप० जथाख्यात नी उत्कृष्टी, नव वर्ष ऊणी पूर्व कोड़ पुष्टी ।। २२. गुणतीस वर्ष ऊण कोड़ पूर्व परिहार०, सुखम० अंतरमुहूर्त सार।
घणां जीवां आश्री सामायक जथाख्यात, सदा काल रहै साख्यात ।। २३. छेदोप० जघन अढी सौ वर्ष होय, उत्कष्टो पचा लाख कोड़ सागर जोय ।
जघन देस ऊणो दोय सौ वर्ष परिहार, उत्कष्टो देश ऊणो दोय पूर्व कोड़ सार ।। २४. सुखमसंपराय जघन समो एक, उतकष्टो अंतरमुहूर्त देख ।
ए घणां जीवां आश्री जाण, गुणतीसमो थित दुवार पिछाण ।।
१. पांच संजया जघन आंतरो, अंतरमुहूर्त मात ।
उतकष्टो देश ऊणो अर्द्धपुद्गल तणों, एक जीव आश्री कहात ॥ २. घणां जीवां आश्री आंतरो, सामायक जथाख्यात रो नाहि । छेदोपस्थापनी नों जघन आंतरो, तेसठ सहंस वर्ष नों त्यांहि ।।
ढाल : ३
(देशी धीज कर सीता सती रे लाल) १. आंतरो कह्यो तेसठ सहस वर्ष नों रे, तो पांचमे आरे आंतरो केम रे, सुगण नर । जघन तेसठ सहंस सू ओछो नहीं रे लाल, कोई पूछा करै एम रे, सुगण नर ।
झीणो ज्ञान जिनराज नों रे लाल ।। (ध्रुपदं) २. ते कह्यो दस खेत्रां आसरी रे, छेदोपस्थापनी चारित नों सोय रे। एक भरत आश्री मत जाणजो रे लाल, ए न्याय धारी लीजो जोय रे ।।
४७६ भगबती जोड़
Jain Education Intemational
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 492 493 494 495 496 497 498