Book Title: Bhagavati Jod 07
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 492
________________ ६. च्यारूं चारित में च्यार भांगा कह्या, च्यारूंइ ग्यान विचार । जथाख्यात माहे इमहीज छै, तथा केवलज्ञान श्रीकार ।। ७. च्यार संजया भणे जघन प्रवचन माता तणां, उत्कष्ट चवदै पूर्व तहतीक । पडिहारविशुद्ध जघन नवमा पूर्व नी तीजी वत्थू, उतकष्ट देश ऊणो दश पूर्व ठीक ।। ८. तथा जथाख्यात सूत्रवतिरित्त छ, हिवै तीनां में तीर्थ पावै च्यार । तीर्थी अणतीर्थी प्रतेकबुद्ध तीर्थंकर, एक तीर्थी होवै छेदोप० परिहार ।। ९. च्यार संजया द्रव्य लिंग आसरी, सलिंग अनलिंग ग्रीहोलिंग विचार । ___ भावलिंग आश्री सलिंगी कह्या, द्रव्य भाव लिंग आश्री सलिंगी परिहार ।। १०. दोय चारित्र शरीर तीन च्यार पांच छ, आहारीक त्यां वेके शरीर । छेहला तीन चारित में शरीर तीन छ, हिवै खेत्र दुवार इग्यारमो कहै वीर ।। ११. तीन संजया जनम छता आसरी पनरे खेत्रे, साहरण अढी द्वीप मांहि । छेदोप० एवं पिण दस खेत्र में कह्या, परिहार दस खेत्रे पण साहरण नांहि ।। १२. समायक जनम छता आसरी, अवसर्पणी ने तीजे चोथे पांचमे आरे । उत्सपिणी नैं जन्म आश्री बोजे तीजे चोथे कह्यो, छता आश्री तोजे चोथे साहरण सारे ।। १३. छेदोप० जनम छता आश्री, अवसर्पिणी तणे तीजे चोथे पांचमे आरे ताम | उत्सपिणी ने जन्म आश्री बीजे तीजे चोथे कह्यो, छता आश्री तीजे चोथे साहरण सगले ठाम ।। १४. परिहारविशुद्ध अवसपिणी जन्म आसरी तीजे चौथे, छता आश्री तीजे चोथे पंचम काल । उत्सपिणी जन्म आश्रो बीजे तीजे चोथे कह्यो, छता आश्री तोजे चोथे भाल ।। १५. सुखमसंपराय जथाख्यात परिहार ज्यू, पिण छै महाविदेह खेत्र मझार । साहरण आश्री अढी द्वीप में, बारमो कह्यो काल दुवार ।। १६. पेहला दोय चारितवाला जघन थी, उपजै सुधर्म देवलोक । उत्कष्ट अनुत्तरविमाण में, पछै वेगा पोहचै गति मोख ।। १७. जघन सुधर्म उत्कृष्ट आठमें, परिहारविसुद्ध चारित्रीयो जाय । सुखम जघन उत्कृष्ट अनुत्तरविमाण में, जथाख्यात जघन सर्वार्थसिद्ध उत्कष्ट मोख मांय ।। १८. समायक छेदोपणी चारित बेहूं, पावै पांच पदवी बखाण । इन्द्र सामानीक लोकपाल नी, तावतीसक अहमिंद्र जाण ।। १९. परिहारविशुद्ध च्यार अहमिद्र विना, सुखम जथाख्यात अहमिंद्र अमोल । आराधक हुआं ए पदवी लहै, विराधक अनेरे ठामे नहीं तोल ।। २०. तीन संजया जघन थित दोय पल तणी, उतकष्टो तेती-तेती सागर संजया दोय । परिहार अठारे सागर तणी, आगे जघन उत्कृष्ट तेती सागर होय ।। २१. असंख्याता थानक च्यारू चारित तणां, जथाख्यात रो थानक एक । सर्व थोड़ो थानक जथाख्यात रो, असंख्यातगुण सुखमसंपराय नां देख ।। २२. असंख्यातगुणां परिहारविसुद्ध नां, सामायक छेदोप० माहोमां तुला सोय । परिहारविशुद्ध सू असंखगुणा, ए संयम-थानक अल्पाबहुत जोय ।। २३. ए चवदै दुवार इम जाणजो, पनरमों निकासे पज्जवा दुवार । पांच चारित रा पज्जवा अनंत छ, ते सांभलजो विस्तार ।। -० ४७४ भगवती जोड Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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