Book Title: Bhagavati Jod 07
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 488
________________ १९. तीन नेयठा कषाय संजल नी चोकड़ो, चोथे च्यार तीन दोय अथवा एक । निग्रंथ में उपशंत खीण कही छ, सनातक में खोण सुध विवेक ।। २०. तीन नेयठा भली तीन लेस्या, कषायकुशील माहे छहूं पावै । तिण रो तो पेटो भारी घणों छै, पांच गुणठाणां तिण माहे आवै ।। २१. निग्रंथ सनातक में शुकल-लेश्या, सनातक तथा अलेसी होयो । उगणीसमों लेश्या दुवार कह्यो छ, बीसमो परिणाम दुवार जोयो।। २२. विरधमान हायमान में अवठोया, च्यारूं नेयठा तीन परिणाम । निग्रंथ सनातक विरधमान अवठोया, तानां रो थित सुणो हिवै ताम ॥ २३. च्यारूं नेयठा जघन एक समा री, उत्कृष्टी अंतरमुहूर्त दोयां रो। अवठीयां री उत्कृष्टी सात समा री, परिणाम थित ओलख लीजो त्यांरो । २४. निग्रंथ में विरधमान जघन उत्कृष्टी अंतरमुहर्त अवठोया, जघन एक समो उतकष्टी अंतरमुहूर्त जोड़ । सनातक विरधमान जघन उतकष्टो अंतरमुहर्त, अवठीया जघन अंतरमुहूर्त उतकष्टो देश ऊणो पूर्व कोड़ ।। २५. पुलाक सात कर्म बांधै आऊ वर्जी ने, बुकस पडिसेवणा बांध सात आठ । कषायकुशील आठ सात षट बांधे, आग सातावेदनी बंधै पुन थाट ।। २६. सनातक मैं तथा अबंध कह्यो छ, ए इकवीसमो कह्यो बंध दुवार । च्यार नेयठा नियमा आठ वेद, निग्रंथ सात सनातक च्यार ।। २७. पुलाक छह कर्म उदीरै वेदनी आऊ वर्जी, बुकस पडिसेवणा पिण षट तथा आठ सात । कषायकुशील एवं तथा पांच उदीर, वेदनी मोहणी आऊ वर्जी विख्यात ।। २८. निग्रंथ पांच तथा दोय उदीरे, सनातक नाम गोत्र तथा नहीं उदीरै । हिव उवसंपज्जणा चोवोसमों दुवार, निज गुण छांडी नै और में जाय फेरै ।। २९. पुलाकपणों छांडी हुवै कषायकुशील असंजमी, बुकसपणो छांडी पडिसेवणा थाय । वले कषाय असंजम संजमासजम में, मोहकर्म वस गोता खाय ।। ३०. पडिसेवणा छांडी बुकस कषायकुसील में, वले असंजम संजमासंजम में जावै । कषायकुशीलपणों छांडी पडिसेवणा सहित च्यारा में, पुलाक निग्रंथ में इधको थावै ।। ३१. निग्रंथपणों छांडी नै सनातक में जावै, वले कषायकुशील असंजम में कहीजै । सनातकपणों सिद्ध गति सिधावै, त्यां आत्म कार्य सगलाई सोझै ।। ४७० भगवती जोड़ Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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