Book Title: Bhagavati Jod 07
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati
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ढाल : ४९८
दूहा
१. अठवीस उद्देश ओधिक तणां, भवसिद्धिक अठवीस ।
अठावीस अभव्य तणां, कह्या चोरासी जगीस ।। २. हिव समदृष्टी आदि नां, अष्टवीस अठवीस ।
कहियै छै उद्देसगा, आख्या जे जगदीश ।। सम्यक्दृष्टि राशियुग्मकृतयुग्मज २४ दंडकों में
*राशियुग्म शत श्री जिन भाख्यो ।। [ध्रुपदं] ३. सम्यकदृष्टि राशिजुम्म-कडजुम्म प्रभु ! नेरइया जेह कहेसो।
किहां थकी ऊपजै छै आवो, आख्यो इम जिम प्रथम उद्देशो ।। ४. इम च्यारूं ही युग्म विषे जे, च्यार उद्देशा तंतो।
भवसिद्धिक ने सरिषा करिवा, सेवं भंते ! सेवं भंतो! ।।
३. सम्मदिट्ठीरासीजुम्मकडजुम्मनेरइया णं भंते ! कओ
उववज्जति ?एवं जहा पढमो उद्देसओ। ४. एवं चउसु वि जुम्मेसु चत्तारि उद्देसगा भवसिद्धियसरिसा कायव्वा ।
(श. ४१।७३) सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति। (श. ४११७४) ५. कण्हलेस्ससम्मदिट्ठीरासीजुम्मकडजुम्मनेरइया णं
भंते ! कओ उववज्जति ? ६. एए वि कण्हलेस्ससरिसा चत्तारि बि उद्देसगा
कायव्वा। ७. एवं सम्मदिट्ठीसु वि भवसिद्धियसरिसा अट्टावीसं उद्देसगा कायव्वा।
(श ४११७५) सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति जाव विहरइ।
(श. ४१७६)
५. कृष्णलेशी समदृष्टि राशिजुम्म-कडजुम्म नारकि भंतो!
किहां थकी ऊपजै छै आवी ? इत्यादिक सुवृतंतो ।। ६. ए पिण कृष्णलेशी नै सरीषा, च्यार उद्देशा करिवा ।
समदृष्टी नां आठ उद्देशा, इण रीते उच्चरिवा ।। ७. इम समदृष्टि विषे पिण भवसिद्धि सरीषा.
करिवा अठवीस उद्देश। सेवं भंते ! सेवं भंते! यावत विचरै गणेशं ।
॥ इति ४११८५-११२॥ हिवै मिथ्यादृष्टि नां २८ उद्देशा कहै छै
मिथ्यादृष्टि राशियुग्मकृतयुग्मज २४ दंडकों में ८. मिथ्यादष्टि राशिजुम्म-कडजम्म, नेरइया हे भगवंतो!
किहां थकी ऊपजै छै आवी ? इम इहां पिण सुवतंतो ।। ९. मिथ्यादृष्टि अभिलापे करि, अभव्यसिद्धिक सरीषं । अठावीस उद्देशा करिवा, सेवं भंते ! जगदीशं ।।
॥२८, एवं सर्व १४०॥
॥ इति ४११११३-१४० ॥ हिवै कृष्णपाक्षिक नां २८ उद्देशा कहै छै
कृष्णपाक्षिक राशियुग्मकृतयुग्मज २४ दंडकों में १०. कृष्णपाक्षिक राशिजुम्म-कडजम्म, नेरइया हे भगवंतो!
किहां थकी ऊपजै छै आवी ? इत्यादिक सुवतंतो ।।
८. मिच्छादिट्ठीरासीजुम्मकडजुम्मनेरइया णं भंते ! कओ
उववज्जति ? एवं एत्थ वि ९. मिच्छादिट्ठीअभिलावेणं अभवसिद्धियसरिसा अट्ठावीस उद्देसगा कायव्वा ।
(श. ४१७७) सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति । (श. ४१७८)
१०. कण्हपक्खियरासीजुम्मकडजुम्मनेरइयाणं भंते ! कओ
उववज्जति?
*लय : पर नारी नों संग न कीज
श० ४१, ढा० ४९८ ४५१
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