Book Title: Bhagavati Jod 07
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 473
________________ १३. चउरासी शत सहस्र पद कांड, तास परूप्या ए प्रत्यक्ष पंचम अंग विषे कांइ, वारू गुण नां १४. अंग ते प्रवचन रूप जे कांइ, परम पुरुष नां अवयव छै तेहविषे कांइ, पद चोरासी १५. प्रवचन रूपज जाणवो कांइ, परम तेनां अवयय अंग विषे कांड पद आगमपुरुष दिट्टिवाओ वियाग अणुत्तरोववाइयदसाओ srafs सियाओ उवासंगदाओ सूरपण्णत्ती विपण्णत्ती ठाण जीवाजीवाभिगमे आयारो ओवाइयं ताम । धाम ॥ Jain Education International दक्ष । लक्ष ।। प्रत्यक्ष । पुरुष चोरासी लक्ष ॥ दिसाव पुष्पबूलियाओ पण्हावागरणाई पुफियाओ अंतगड साओ निरयावलियाओ मामकहानी चंदपण्णत्ती समवाओ पण्णवणा सूपगडो रायपसेणिय आगम पुरुष की परिकल्पना ato- - द्वादश अंग प्रवचन रूप तो परम पुरुष । अन तेहनां अंग अवयव भगवती । तेहने विषे चोरासी लक्ष पद । श्री आचारांग अंग, उबवाई उपंग जीमणो पग । श्री सूयगडांग अंग, रायप्रश्रेणि उपंग डावो पग । श्री ठाणांग अंग, जीवाभिगम उपंग जीमणी जंघा । श्री समवायंग अंग, पन्नवणा उपंग डावी जंघा । भगवती अंग, जंबूद्वीपपन्नत्ती उपंग साथल जीमणी । श्री ज्ञाता अंग. For Private & Personal Use Only १३. चतुरशीतिः शतसहस्राणि प्रज्ञप्तानि 'अत्र' प्रत्यक्षे पञ्चमे इत्यर्थः । (बृ. प. ९७९) १४. प्रवचनपरमपुरुषावयव इति' (यू. प. ९७९) 'अङ्गे श० ४१, ढा० ५०० ४५५ www.jainelibrary.org

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