Book Title: Bhagavati Jod 07
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati
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३६. जहा भवसिद्धियसताणि चत्तारि एवं अभवसिद्धिय
सताणि चत्तारि भाणियवाणि,
३७. नवरं-सम्मत्त-नाणाणि सव्वेहिं नत्थि, सेसं तं
चेव । ३८. एवं एयाणि बारस बेंदियमहाजुम्मसताणि भवति ।
(श. ३६।१२) सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति । (श. ३६।१३)
३६. जिम भवसिद्धिक जीव नां,
च्यार शतक आख्यात हो। एवं अभवसिद्धिक तणां,
चिहुं शत भणवा विख्यात हो। ३७. णवरं इतरो विशेष छ, सम्यक्त्व अथवा ज्ञान हो।
नथी सर्वथा अभव्य में, शेष तिमज पहिछान हो ।। ३८. इम ए बेइंद्रिय महाजुम्म, बारै अंतर-शत होय हो। सेवं भंते ! ए बेंद्रिय, महायुग्म शत जोय हो ।।
इति नवम से द्वादश अन्तर शतक । इति बेंद्रिय महायुग्म शता समाप्ता। ए छत्तीसमों शतक अर्थ थकी संपूर्ण ।
॥इति ३६१६-१२॥ ३९. ढाल च्यार सय ऊपर, व्याणमी कहिवाय हो। भिक्ष भारीमाल ऋषिराय थी,
'जय-जश' हरष सवाय हो ।
गोतक छन्द १. षटत्रिशमो द्वींद्रिय महाजम्मा करी शत शोभतो।
वर बार अंतरशतक नां परिवार परिवरियो छतो।। २. इम सप्तत्रिशम अष्टत्रिश एकोनचत्वारिंशमा। त्रि-चतुर-सन्निपंचेंद्रि महाजुम्म
तिमज अंतर शत गमा ।। षत्रिंशत्तमशते द्वादशान्तरशतकार्थः।।
४२२ भगवती जोड़
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