Book Title: Bhagavati Jod 07
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati
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११. एवं तेयोग संघात ही कहिवो, इम कल्योज साथ पिण मंत । शेष कोजिम प्रथम उद्देशे, जाव वैमानिक सेवं भंत ! ॥इति ४१३॥
राशियुग्म कल्पोज राशि वाले २४ बंडकों में उपपात आदि की
प्ररूपणा
१२. राशियुग्म - कलियोग नारकी, किहां थकी उपजै भगवान ? एह उद्देश जाणवूं, णवरं विशेष इतो पहिछान || १३. परिमाण एक वा पंच तथा नव, तेर वा संख तथा असंख्यात । नारकी ने विषे आवी ऊपजे, संवेध कहियो विचारी सुवात ।।
१४. ते प्रभु ! जीवा जे समय कलिओगा,
तेह समय कडजुम्मा होय ? जेह समय कडजुम्मा हुवै छै, तेह समय कलिओगा जोय ? जिन कहै अर्थ समर्थ ए नांही ॥
१५. एवं योज संघाते पिण कहिवा,
इम द्वापरजुम्मा संघाते पिण हंत । शेष कोजिम प्रथम उद्देगे, जाय विमाणिया सेयं भंत ! ।। इति ४१।४ ।।
कृष्णलेश्यी आदि राशियुग्म कृतयुग्मज २४ दंडकों में उपपात आदि की प्ररूपणा
१६. कृष्णलेशी राक्षिजुम्मकडजुम्म नारकी,
,
किहां थको उपजे भगवंत ? ऊपजवूं जिम धूमप्रभा में आयो तिम कहियूँ विरतंत ॥ १७. शेष विस्तारज प्रथम उद्देशे, असुर नें का तेम कहिवाय । एवं यावत वाणव्यंतर नैं, वारू जिन वच नां लही न्याय || १८. मनुष्य ने पिण कहिवो नारकि नीं पर,
आत्म- अयश प्रति उपजीवेह | इम नह भणयो कृष्णलेशी तेह || सोरठा
अलेशी अक्रिया तिण भव सी,
१९. 'इहां मनुष्य अवदात, आत्म-असंजम उपजीवे आख्यात, आश्रय प्रति धारण २०. असंजम अविरति जाण, तेह तेह प्रते धारण धुर व्यारूं गुणठाण, देश अविरती २१. छठे अविरति नांय, हिंसादिक
करि तिको ।
करें ॥ करें।
पांचू
पिण
सर्वविरति सुखदाय, कृष्णलेश त्यां पिण २२. संजम उपजीवेह, इम न कह्यो किण कृष्णादिक लेशेह, अविरति रूप
नहीं
४४६ भगवती जोड़
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पंचमी ॥
तणीं ।
अछे ||
कारणे ।
तिहां ॥
११. एवं तेयोएण वि समं, एवं कलियोगेण वि समं, सेसं जहा पढमुद्देस जाव वेमाणिया । (४१०३१) सेवं भंते ! सेवं भंते । ति (श. ४१०३२)
भंते !
१२. रासीजुम्मकलिओगनेरइया णं उववज्जंति ? एवं चेव, नवरं-१३. परिमाणं एक्को वा पंच वा नव वा तेरस वा संखेज्जा वा असंखेज्जा उववज्जंति, संवेहो । (स. ४१३३) १४. ते णं भंते! जीवा जं समयं कलियोगा तं समयं कडजुम्मा ? जं समयं कडजुम्मा तं समयं कलियोगा ? नो इणट्ठे समट्ठे ।
कओ
१५. एवं योग व समं एवं दानरजुम्मेष विराम, सेसं जहा पढमुद्देसए जाव वेमाणिया !
सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति ।
(श. ४१/३४) (श. ४१/३५ )
१६. कहलेसम्ममा भक उववज्जंति ? उववाओ जहा धूमप्पभाए,
१७. सेस जहा पहए। असुरकुमाराणं तब एवं जाव वाणमंतराणं ।
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१८. मणुस्साण वि जहेव नेरइयाणं आयअजसं उवजीवंति अलेस्सा, अकिरिया तेणेव भदव्य सिज्यंति एवं न भाणियव्वं,
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