Book Title: Bhagavati Jod 07
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati
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सप्तत्रिंशत्तम शतक
ढाल : ४९४
त्रोन्द्रिय महायुग्मों में उपपात आदि की प्ररूपणा
दूहा १. कडजुम्म-कडजुम्म तेइंदिया, किहां थकी भगवंत !
उपजै छै आवी करी, इत्यादिक सउदंत ? २. इम तेइंद्रिय ने विषे, करिवा शतकज बार ।
शतक बेंद्रिय सारिखा, णवरं विशेष धार ।। ३. अवगाहना जघन्य थी, आंगुल तणोंज चीन । __ असंख्यातमों भाग है, उत्कृष्ट गाऊ तीन ।। ४. स्थिति जघन्य थी इक समय, उत्कृष्टी अवधार । __ एगुणपचास निशि दिवस, शेष तिमज सुविचार ।। ५. सेवं भंते ! स्वाम जी, तेइंद्रिय महाजुम्म । द्वादश अंतर शत सहित, अर्थ थकी अवगम्म ।।
इति तेंद्रिय महायुग्म शता समाप्ता। बारै अंतर शत सहित सप्ततीसम शत संपूर्ण ।।
॥इति ३७११-१२॥
१. कडजुम्मकडजुम्मतेंदिया णं भंते ! कओ
उववज्जति ? २. एवं तेंदिएसु वि बारस सता कायव्वा बेंदियसत
सरिसा, नवरं३. ओगाहणा जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभाग, उक्को
सेणं तिण्णि गाउयाई। ४. ठिती जहण्णणं एक्कं समय, उक्कोसेणं एकूणवण्ण राइंदियाई, सेसं तहेव ।
(श. ३७।१) ५. सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति। (श. ३७१२)
अष्टत्रिंशत्तम शतक
चतुरिन्द्रिय महायुग्मों में उपपात आदि की प्ररूपणा
_ *अब नहिं वीसरूं । म्हारै हृदय वस्या हो जिन वैन, अब नहिं वीसरूं । एतो श्री जिन साचा सैन, अबै नहिं वीसरूं । एतो प्रभु-वच अंतर-नैन, अबै नहिं वीसरूं । तिणसं चित माहै पामै चैन, अब नहिं वीसरूं ।।(ध्रपदं) ६. चउरिद्रिय संघात ही, इम शत करिवा बार ।
णवरं इतो विशेष छै, सांभलजो धर प्यार ।। *लय : अब नहिं वीसरूं
६. चउरिदिएहि वि एवं चेव बारस सता कायव्वा,
नवरं
श० ३७,३८ ढा० ४९४ ४२५
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