Book Title: Bhagavati Jod 07
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 428
________________ २२. अचरम समय कडजुम्म-कडजुम्म, एकेद्रिया भगवंत! किहां थकी ऊपजै छै आवी? इत्यादिक सुवतंत ।। वा०-अचरम कहितां नहीं छै चरम समय उत्तर लक्षण जेहन ते अचरम एतले भव नां छहला समय बिना जे समया ते अचरिम समया इहां वांछया। तेहिज कृतयुग्म-कृतयुग्म संख्या विशेष एकेद्रिय हे भगवन ! किहां थकी ऊपजै ? इत्यादि। २३. जिम अपढम उद्देशके आख्यो, विशेष रहित तिम कहिवो। सेवं भंते ! पंचमुद्देशक, अर्थ अनोपम लहिवो ।। वा०-अप्रथम समय उद्देशो ते तीजा उद्देशा नों नाम छ। तीजा उद्देशा नं पहिला ओघ उद्देशा नी भलावण छै ते माट पहिलो ओघ उद्देशो, तीजो अनैं पांचमो-ए तीन उद्देशा एक सरीखा छै। ते भणी ए तीन नै विषे १० णाणत्ता नथी। ॥३५॥१॥५॥ २२. अचरिमसमयकडजम्मकडजम्मएगिदिया गं भंते ! कओ उववज्जति? वा०-'अचरमसमयकडजम्मकडजुम्मएगिदिय' त्ति न विद्यते चरमसमय उक्तलक्षणो येषां तेऽचरमसमयास्ते च ते कृतयुग्मकृतयग्मै केन्द्रियाश्चेति समासः । (वृ. प. ९६९) २३. जहा अपढमसमयउद्देसो तहेव निरवसेसो भाणितब्बो। (श. ३५।२९) सेवं भंते ! सेवं भते !त्ति । (श. ३५।३०) २४. पढमपढमसमयकडजुम्मकडजुम्मएगिदिया णं भंते ! कओ उववज्जति ? वा०-'पढमपढमसमयकडजुम्मकडजुम्मएगिदिय' त्ति, एकेन्द्रियोत्पादस्य प्रथमसमययोगाद्ये प्रथमाः प्रथमश्च समयः कृतयुग्मकृतयुग्मत्वानुभूतेर्येषामेकेन्द्रियाणां ते प्रथमप्रथमसमयकृतयुग्मकृतयुग्मैकेन्द्रियाः । (व. प. ९६९) २५. जहा पढमसमयउद्देसओ तहेव निरवसेसं । (श. ३५।३१) सेवं भंते ! सेवं भंते ! ति जाब विहरइ। (श. ३५५३२) २६. पढमअपढमसमयकडजुम्मकडजुम्मएगिदिया णं भंते ! कओ उववज्जति ? २४. प्रथम समय कडजुम्म-कडजुम्म, एकेद्रिया भगवंत ! किहां थकी ऊपजै छै आवी? जिन भाखै सुण संत ।। वा०-पढम-पढम समय कहितां एकेद्रिय उत्पाद नै विषे प्रथम समय जोग थकी प्रथम । वली प्रथम समय कृतयुग्म-कृतयुग्मत्व अनुभूति जे एकेंद्रिय नै ते प्रथम-प्रथम समय कृतयुग्म एकेंद्रिय हे भगवन ! किहां थकी ऊपजै? इत्यादि। २५. जिम प्रथम समय उद्देशके आख्यो, कहिवो तिमज विशेष रहीत । सेवं भंते ! यावत विचरै, षष्ठमुद्देश संगीत ।। ॥३५॥१॥६॥ २६. पढम-अपढम समय कडजुम्म ___कडजुम्म एकेंद्रिया भगवंत ! किहां थकी ऊपजे छै आवी? उत्तर दै अरिहंत ॥ वा०-पढम कहिता एकेंद्रिय उत्पाद नै प्रथम समय जोग थकी प्रथम कहिये वली जे अपढम कहितां अप्रथम समय कृतयुग्म-कृतयुग्मत्व अनुभूति जेह एकेद्रिय नै ते प्रथम-अप्रथम समय कृतयुग्म-कृतयुग्म एकेंद्रिया कहिवा । इहां एकेंद्रियपणे उत्पाद प्रथम समयवर्तीपणां नै विषे जेहन जेह विवक्षित संख्यानुभूति नै अप्रथम समयवर्तीपणुं तेह प्राग्भव संबंधी नां तेह प्रतै आश्रयी जाणवो । एतल एकेंद्रिय उत्पाद में प्रथम समयवर्तीपणे छते ते एकेंद्रिय नै जे कृतयुग्म-कृतयुग्म रूप संख्यानुभूति नों अप्रथम समयवर्तीपणों ते प्रथम-अप्रथम समय एकेद्रिय हे भगवन ! किहां थकी ऊपजै? इत्यादि । २७. जिम प्रथम समय उद्देशके आख्यो, तिमहिज कहिवो ताम । सेवं भंते ! अर्थ अनोपम, सप्तमुद्देशक आम ।। ॥३५॥१७॥ वा०–'पढमअपढमसमयकडजुम्मकडजुम्मएगिदिय' त्ति, प्रथमास्तथैव येऽप्रथमश्च समयः कृतयुग्मकृतयुग्मत्वानुभूतेर्येषामेकेन्द्रियाणां ते प्रथमाप्रथमसमयकृतयुग्मकृतयुग्मकेन्द्रियाः, इह चैकेन्द्रियत्वोत्पादप्रथमसमयत्तित्वे तेषां यद्विवक्षितसङ्ख्यानुभूतेरप्रथमसमय वत्तित्वं तत्प्राग्भवसम्बन्धिनी तामाश्रित्येत्यवसेयम्, (व. प. ९६९) २७. जहा पढमसमयउद्देसो तहेव भाणियव्बो। (श. ३५॥३३) सेवं भंते ! सेवं भंते ! ति। (श. ३५४३४) ४१० भगवती जोड़ Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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