Book Title: Bhagavati Jod 07
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 422
________________ ४२. नो मणजोगी, नो वइजोगी, कायजोगी। सागारोव उत्ता वा, अणागारोवउत्ता वा। (श. ५३६९) ४३. तेसि णं भंते ! जीवाणं सरीरगा कतिवण्णा ? जहां उप्पलुद्देसए (११३१७-२८) सव्वत्थ-पुच्छा। ४४. गोयमा ! जहा उप्पलुद्देसए ऊसासगा वा, नीसासगा वा, नो उस्सासनीसासगा वा । ४५. आहारगा वा अणाहारगा वा। नो विरया, अविरया, नो विरया रया। सकिरिया, नो अकिरिया । ४६. सत्तविहबंधगा वा अढविहबंधगा वा । आहारसण्णो वउत्ता वा जाव परिग्गहसण्णोवउत्ता वा । ४२. मनजोगी पिण ते नहीं वचनजोगी पिण नाही, इक कायजोगी कहिवाई हो लाल । सागरोवउत्ता है तथा अनाकार-उपयुक्तज ते, जीव एकेद्रिय थाई हो लाल ।। ४३. हे प्रभुजी ! ते जीव नां शरीर केतले वर्णे ? कांइ जिम उत्पल-उद्देशे हो लाल । शत ग्यारम उद्देशके आख्यो तिमहिज कहि, सह स्थाने प्रश्न अशेषे हो लाल ।। ४४. जिन भाखै सुण गोयमा ! जिम उत्पल-उद्देशे, कांइ आख्यो तिम वर्णादि हो लाल । उस्सासवंत वा निःस्वासगा अथवा नहीं उस्सासज, ___कांइ नहिं निःस्वास संवादि हो लाल ।। ४५. आहारक वा अनाहारका विरती तेह नहीं है, ___ कांइ जेह अविरती जाणी हो लाल । विरताविरति नहीं तथा क्रिया-सहित कहीजै, पिण क्रिया-रहित न ठाणी हो लाल ।। ४६. आयु वर्जी सप्तविध-बंधगा तथा अष्टविध-बंधक, ते आयु-बंध ने कालं हो लाल । आहारसन्नावउत्ता तथा जाव परिग्रहसंज्ञा उपयुक्त वीर वच न्हालं हो लाल ।। ४७. क्रोधकषाई ते हवं यावत लोभकषाई, कांइ इत्थि वेद न पावै हो लाल । पुरुषवेदगा पिण नथी हुवै नपुंसवेदगा, श्री जिनवर इम फुरमावै हो लाल ।। ४८. इत्थिवेद-बंधका तथा पुरिस-वेदगा बांध, वा वेद नपुंस-बंधगा हो लाल । सन्नी नहीं असन्नी अछ तेह सइंदिया कहिये, काइ अणिदिया न संधगा हो लाल ।। ४९. कडजुम्म-कडजुम्म एगिदिया हे प्रभु ! काल थकी जे, ___ कांड कितो काल ते होई हो लाल ? जिन भाखै सुण गोयमा ! जघन्य थकी तसु अद्धा, ___ कांइ एक समय अवलोई हो लाल । ५०. उत्कृष्ट काल अनंत ही जेह अनंती कहिये, काइ अवसप्पिणी लग लहियै हो लाल । अनंती वली उत्सप्पिणी वनस्पति नो अद्धा, कांइ काल एतलो रहिये हो लाल ।। ५१. संवेध तसु भणवो नथी जे उत्पल-उद्देशे, उत्पल ने संवेध आख्यो हो लाल । ते संवेध इहां नथी तास न्याय वृत्तिकारे, कांइ वृत्ति विषे इम दाख्यो हो लाल ।। ४७. कोहकसायी वा जाव लोभकसायी वा । नो इत्थि वेदगा, नो पुरिसवेदगा, नपुंसगवेदगा। ४८. इत्थिवेदबंधगा वा पुरिसवेदबंधगा वा नपुंसगवेद बंधगा वा । नो सण्णी, असण्णी। सइंदिया, नो अणिदिया। (श. ३५०१०) ४९. ते णं भंते ! कडजुम्मकडजुम्मएगिदिया कालओ केव चिरं होति? गोयमा ! जहण्णेणं एक्कं समयं, ५०. उक्कोसेणं अणतं कालं--अणता ओसप्पिणि उस्सप्पिणीओ, वणस्सइकाइयकालो। ५१. संवेहो न भण्णइ, ४०४ भगवती जोड़ Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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