Book Title: Bhagavati Jod 07
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 421
________________ ३२. ते णं अणंता समए समए अवहीरमाणा-अवहीरमाणा अणताहि ओसप्पिणि-उस्सप्पिणीहि अवहरंति, णो चेव णं अवहिया सिया। वा०-'जहा उप्पलुद्देसए' त्ति उत्पलोद्देशक:एकादशशते प्रथमः, इह च यत्र ववचित्पदे उत्पलो देशकातिदेशः क्रियते तत्तत एवावधार्य, (वृ. प. ९६७) ३३. उच्चत्तं जहा उप्पलुद्देसए। (श. ३५।५) ३४. ते णं भंते ! जीवा नाणावरणिज्जस्स कम्मस्स कि बंधगा? अबंधगा? गोयमा ! बंधगा, नो अबंधगा। ३५. एवं सम्वेसि आउयवज्जाणं । आउयस्स बंधगा वा अबंधगा वा। (श. ३५॥६) ३२. तेह अनंता जीवड़ा समय-समय अपहरतां, कांइ अपहरतांज कहाई हो लाल । अनंत अव-उत्सप्पिणी लगै अपहरियै तो निश्चे, काइ अपहरिया नहिं जाई हो लाल ।। बा०-जहा उप्पलुद्देसए ति --उत्पल उद्देशके एकादशमशतके प्रथमउद्देशके जिम कह्यो तिम कहिवं । बलि इहां किहांइक जे पद नै विषे उत्पल उद्देशक थकी अतिदेश कीजिये तेहीज जाणवो। ३३. ऊंचपणों जिम ग्यारमा शतक तणों जे जाणी, _ कांइ उत्पल प्रथम उद्देश हो लाल । तेह विषे जे दाखियो तिमज इहां पिण कहिवं, ___कांइ वारू रीत अशेष हो लाल ।। ३४. हे भगवंत ! ते जोवड़ा ज्ञानावरणी कर्म नां स्यं, तेह बंधगा थाई हो लाल । अथवा तेह अबंधगा? जिन कहै तेह, ___बंधगा पिण अबंधगा छै नांही हो लाल ।। ३५. इम सहु कर्म आयु वर्जी आयु तणां बंधगा, ते बंधकाल में कहिये हो लाल । अथवा तेह अबंधगा बंधकाल विण तेहिज, कांइ अबंधगा जे लहिये हो लाल ।। ३६ हे प्रभुजी ! ते जीवड़ा ज्ञानावरणी केरा, ____ कांइ वेदक प्रमुखज भणिय हो लाल ? जिन कहै गोयम ! वेदगा पिण अवेदगा ते नहीं है, इम सर्व कर्म नै थुणिय हो लाल ।। ३७. हे भगवंत ! ते जीवड़ा स्यं सातावेदक छ, दुःख असाता वेदे हो लाल ? जिन कहै सातावेदगा तथा असाता वेदै, इम कहिये ते बिहं भेदे हो लाल ॥ ३८. इम निश्चै उत्पल उद्देशक तणी अनुक्रमे परिपाटी, कांइ कहिवी सर्व पिछाणी हो लाल । सर्व कर्म नों उदय छै पिण अणउदय नहीं है, एकेंद्रिय माट जाणी हो लाल । ३९. कर्म छहूं ना उदोरगा कडजुम्म-कड जुम्म एकेद्रिय, अणउदी रक नाही हो लाल। वेदनी आयु बे कर्म नां हुवै उदीरक अथवा, अणउदीरगा पिण थाई हो लाल ।। ४०. हे भगवंत ! ते जीवड़ा कृष्णलेशी स्यं कहिये ? इत्यादिक प्रश्न उच्चरिये हो लाल। जिन कहै कृष्णलेशी तथा नील तथा कापोतज, तेजुलेशी कहियै हो लाल ॥ ४१. समदृष्टि पिण ते नहीं मिश्रदष्टि पिण नाहीं, कांइ मिथ्यादष्टि कहिये हो लाल । ज्ञानी नहीं अज्ञानी हवै निश्चै दोय अज्ञानी, __मति श्रत अज्ञानज लहिये हो लाल ।। ३६. ते णं भंते ! जीवा नाणावरणिज्जस्स-पुच्छा। गोयमा ! वेदगा, नो अवेदगा। एवं सब्वेसि । (श. ३५७) ३७. ते णं भंते ! जीवा कि सातावेदगा? असाता वेदगा? गोयमा ! सातावेदगा वा असातावेदगा वा । ३८. एवं उप्पलुद्देसगपरिवाडी। सव्वेसि कम्माणं उदई, नो अगुदई। ३९. छण्हं कम्माणं उदीरगा, नो अणुदीरगा। वेदणिज्जाउयाणं उदीरगा वा अणु दीरगा वा । (श. ३८) ४०. ते णं भंते ! जीवा किं कण्हलेस्सा-पुच्छा । गोयमा ! कण्हलेस्सा वा, नीललेस्सा वा, काउलेस्सा वा, तेउलेस्सा वा। ४१. नो सम्मदिट्ठी, नो सम्मामिच्छादिट्ठी, मिच्छादिट्ठी। नो नाणी, अण्णाणी-नियमं दुअण्णाणी, तं जहामइअण्णाणी य सुयअण्णाणी य । श० ३५, उ० १, ढा० ४९१ ४०३ Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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