Book Title: Bhagavati Jod 07
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 423
________________ वा०-संवेहो न भण्णति इति । संवेध न भणवो उत्पल उद्देशक नै विषे उत्पल जीव नों उत्पाद विचारयो । वली तेहनै विषे पृथ्वीकायादि अन्य काय नों अपेक्षा करिकै संवेध संभवै । अन इहां एकेद्रिय नै कडजुम्म-कड जुम्म विशेषण नै उत्पाद अधिकार वली ते परमार्थ थी अनंताहीज ऊपजै वली ते अनंता नीकलवा ना असंभव थकी संवेध न संभवै। अनैं जे सोलस बत्तीसादि एकेंद्रिय नै विषे उत्पाद कह्यो ए त्रसकाय थकी जे तेहनै विषे ऊपज तेहनों अपेक्षा करिकै हीज इति वलि नहीं पारमार्थिक, अनंता नों समय-समय तेहनै विषे उत्पाद थकी। वा०-'संवेहो न भन्नइ' त्ति, उत्पलोद्देशके (११०२९) उत्पलजीवस्योत्पादो विवक्षितस्तत्र च पृथिवीकायिकादिकायान्तरापेक्षया संवेद्यः संभवति इह त्वेकेन्द्रियाणां कृतयुग्मकृतयुग्मविशेषणानामुत्पादोऽधिकृतस्ते च वस्तुतोऽनन्ता एवोत्पद्यन्ते तेषां चोद्वत्तेरसम्भवात्सवेद्यो न संभवति, यश्च षोडशादीनामेकेन्द्रियेषूत्पादोऽभिहितोऽसौ त्रसकायिकेभ्यो ये तेषुत्पद्यन्ते तदपेक्ष एव न पुन: पारमाथिकः, अनन्तानां प्रतिसमयं तेषूत्पादादिति । (व. प. ९६७) ५२. आहारो जहा उप्पलुद्देसए (११।३५) नवरं निव्वाघाएण छद्दिसिं, ५३. वाघायं पडुच्च सिय तिदिसि, सिय चउदिसि, सिय पंचदिसि, सेस तहेव । ५४. ठिती जहण्णणं अंतोमहत्तं, उक्कोसेणं बावीसं वाससहस्साई । समुग्घाया आदिल्ला चत्तारि । ५५. मारणंतियसमुग्घातेणं समोहया वि मरंति, असमोहया वि मरंति । उब्वट्टणा जहा उप्पलुद्देसए (१११३९) । (श. ३५।११) ५२. आहार उत्पल-उद्देशके आख्यो छै जिम कहिवो, कांइ णवरं इतो विशेखज हो लाल । निरव्याघात करी इहां षट दिशि तणोंज कहिवो, __ए लोक मध्य संपेखज हो लाल ।। ५३. व्याघात आश्रयी नै वलि कदाचित त्रिण दिशि नों.. कांइ आहार पूर्ववत लेही हो लाल । कदाचित चिहं दिशि तणों कदाचित पंच दिशि नों, काइ शेष तिमज कहिवेही हो लाल ।। ५४. स्थिति जघन्य इक समय नी उत्कृष्ट सहस्र बावीसज, कांइ वर्ष तणी ए आखी हो लाल । समुदघात चिहुं आदि नी तेजस आहारक केवल, कांइ ए तीन नहीं दाखी हो लाल ।। ५५. मारणांतिक समुद्घाते करो समोहया पिण मरणे, कांइ तेह मरै छै जीवा हो लाल । असमोहया पिण ते मरै उद्वर्तन जिम उत्पल उद्देशे जेम कहीवा हो लाल ।। ५६. अथ सहु प्राणा हे प्रभु ! यावत सगला सत्वा, कडजुम्म-कृतयुग्म तिवारै हो लाल । एकेंद्रियपणे पूर्व ऊपनां? हंता गोयम ! बहुवारे, अथवाज अनंती वारे हो लाल ।। ५७. कडजुम्म-तेओग एके दिया हे भगवंत ! किहां थी, ___ काइ उपजै छै ते प्राणो हो लाल । ऊपजवो उपपात ते तिमहिज सगलो कहिवो, कांइ पूर्ववत पहिछाणी हो लाल ।। ५८. प्रभु ! एक समय किता ऊपजै ? जिन कहै एगुणवीसा, कांइ संख असंख अनंता हो लाल । शेष कडजुम्म-कडजुम्म जिम जाव अनंती वारे, कांइ ऊपनों पूर्व मंता हो लाल ।। ५९. कडजुम्म-दावरजुम्म एगिदिया हे भगवंत ! कहां थी, कांइ उपजै छै ते आणी हो लाल ? उपपात जिम पूर्वे का तिमहिज सगलो कहिवो, कांइ विधि सेती सह जाणी हो लाल ।। ५६. अह भते ! सव्वपाणा जाव सब्वसत्ता कडजुम्म कडजुम्मएगिदियत्ताए उववन्नपुव्वा ? हंता गोयमा ! असई अदुवा अणतखुत्तो। (श. ३५।१२) ५७. कडजुम्मतेओयएगिदिया णं भंते ! कओ उव वज्जति ? उववाओ तहेव (३५॥३)। (श. ३५।१३) ५८. ते णं भंते ! जीवा एगसमए-पुच्छा। गोयमा ! एकूणवीसा वा संखेज्जा वा असंखेज्जा वा अणंता वा उववज्जति, सेसं जहा कड जुम्मकडजुम्माणं जाव अणंतखुत्तो। (श. ३५।१४) ५९. कडजुम्मदावरजुम्मएगिदिया णं भंते ! कओहितो उववज्जति ? उववाओ तहेव । (श. ३५।१५) श० ३५, उ० १, ढा०४९१ ४०५ Jain Education Intemational ation Intermational For Private & Personal Use Only For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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