Book Title: Bhagavati Jod 07
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 411
________________ पञ्चत्रिंशत्तम शतक ढाल : ४९१ १. चउतीसम एकेंद्रिया, श्रेणि प्रक्रम करेह । प्राये बहलपणे करी, परूपिया छै एह ।। २. पंचतीसमें तेहिज फुन, राशि प्रक्रम करेह । परूपिय ते सांभलो, आदि अर्थ तसु एह ।। महायुग्म के प्रकार ३. हे भगवंतजी ! केतला, महायुग्म आख्यात ? जिन भाखै सोलै कह्या, महायुग्म अवदात ।। ४. इहां युग्म शब्दे करी, राशि युग्म कहिवाय । ते फुन क्षुलका पिण हुवै, पूर्व का छै ताय ।। १. चतुस्त्रिशशते एकेन्द्रियाः श्रेणीप्रक्रमेण प्रायः प्ररूपिताः, (वृ. प. ९६४) २. पञ्चत्रिशे तु त एव राशिप्रक्रमेण प्ररूप्यन्ते इत्येवंसम्बन्धस्यास्य द्वादशावान्तरशतस्येदमादिसूत्रम् (व. प. ९६४) ३. कइ णं भंते ! महाजुम्मा पण्णत्ता? गोयमा ! सोलस महाजुम्मा पण्णत्ता, तं जहा४. इह युग्मशब्देन राशिविशेषा उच्यन्ते ते च क्षुल्लका अपि भवन्ति यथा प्राक् प्ररूपिताः (वृ. प. ९६५) ५. अतस्तद्वयवच्छेदाय विशेषणमुच्यते (वृ. प. ९६५) ५ ए कारण थी तेहनों, व्यवछेदन मैं काज । ___ एह विशेषण आखियो, महायुग्म ए साज ।। ६. मोटा फुन ते युग्म छै, महायुग्म ते जान । एह विशेषण आखियो, ते षोडश अभिधान ।। ६. महान्ति च तानि युग्मानि च महायुग्मानि, (वृ. प. ९६५) ७. १. कडजुम्मकडजुम्मे, २. कडजुम्मतेओगे, ३. कड जुम्मदावरजुम्मे, ४. कडजुम्मकलियोगे, ७. 'महायुग्म सोले कह्या, धुर कडजुम्मकडजुम्मे, काइ कडजुम्मतेओगे हो लाल । कडयुग्मद्वापरयुग्म ही, वली चतुर्थो कहिये, कांइ कडजुम्म नै कलिओगे हो लाल ।। हिवै कडजुम्म-कडजुम्मे नों अर्थ कहै छै जे राशि सामयिक चतुष्क ते च्यार द्रव्य अपहारे करी अपहरतां थकां च्यार छहई हवं अन तेह राशि नां अपहार समय नै पिण चतुष्क ते च्यार अपहारे करी चतुःपर्यवसित हीज हुवै एह राशि कृतयुग्म-कृतयुग्म इसो कहिये । एतले द्रव्य अपहार नी अपेक्षाये चोकड़ा था। तथा समय पिण चतुष्क अपहरता पिण चोकड़ा था एतले द्रव्य पिण कृतयुग्म, समया पिण कृतयुग्म । ते भणी कडजुम्म-कडजुम्म कहिये । ते निश्चय जघन्य थी सोल रूप हुदै । ए सोल माहे समय-समय च्यार-च्यार द्रव्य अपहार थकी चतुरग्रपणां थकी छेहड़े च्यार हुवै। तेहनां भाव थकी अनै समय नै पिण चतुर संख्यपणां थकी कडजुम्मकडजुम्म कहिये । (१) हिवै कडजुम्म-तेओगे नों अर्थ कहै छैकडजुम्मतेउयत्ति जेह राशि प्रतिसमये च्यार-च्यार अपहारे करी अपहरतां वा०-'कडजुम्मकड जुम्मे'त्ति यो राशि: सामयिकेन चतुष्कापहारेणापह्रियमाणश्चतुष्पर्यवसितो भवति अपहारसमया अपि चतुष्कापहारेण चतुष्पर्यवसिता एव असौ राशि: कृतयुग्मकृतयुग्म इत्यभिधीयते, अपह्रियमाणद्रव्यापेक्षया तत्समयापेक्षया चेति द्विधा कृतयुग्मत्वात्, एवमन्यत्रापि शब्दार्थो योजनीयः, स च किल जघन्यत: षोडशात्मकः, एषां हि चतुष्कापहारतश्चतुरग्रत्वात्, समयानां च चतु: सङ्खचत्वादिति १, 'कडजुम्मतेओए' त्ति, यो राशिः प्रतिसमयं चतुष्कापहारेणापह्रिमाणस्त्रिपर्यवसानो भवति *लय : पातक छानो नहीं रहे श० ३५, उ० १, ढा०४९१ ३९३ Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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