Book Title: Bhagavana Mahavira aur unka Tattvadarshan Author(s): Deshbhushan Aacharya Publisher: ZZZ Unknown View full book textPage 6
________________ ग्यारहवें अधिकार में देवों द्वारा भगवान का केवलज्ञान कल्याणक महोत्सव मनाने और कुबेर द्वारा रचित समवसरण का वर्णन है। बारहवें अधिकार में समवसरण में गौतम इन्द्रभूति का आना और सन्देह की निवृत्ति होने पर भक्तिविगलित हृदय से भगवान की स्तुति का वर्णन है। तेरहवें से पन्द्रहवें अधिकार तक गौतम गणधर द्वारा प्रश्न करने पर भगवान द्वारा तत्त्व निरूपण बतलाया गया है । सोलहवें अधिकार में इन्द्र द्वारा प्रार्थना करने पर भगवान का विभिन्न देशों में विहार, गौतम गणधर द्वारा श्रेणिक के पूछने पर उनके तीन पूर्व भवों का वर्णन, अन्त में विहार करते हुए भगवान का पावा में निर्वाण, गौतम स्वामी को केवलज्ञान की प्राप्ति और उनका धर्म-तिहार, धर्म उपदेश प्रादि का वर्णन करने के बाद कवि ने अन्त में अपना विस्तृत परिचय दिया है। ___ इस प्रकार महावीर-चरित का वर्णन कवि ने परम्परानुसार किया है। जिस प्रकार जैन पुराणकार चरित्र-वर्णन के माध्यम से जैन धर्म के विभिन्न सिद्धान्तों का प्रतिपादन करने के अवसरों का पूरा उपयोग करते रहे हैं, उसी प्रकार कवि ने प्रस्तुत ग्रन्थ में उउयोग किया है। प्रन्थ में प्रयुक्त विभिन्न छन्द-अलंकार कवि नवलशाह ने वर्ण्य विषय के अनुकूल विभिन्न छन्दों और अलंकारों का प्रयोग करके छन्द और अलंकारशास्त्रों पर अपने अधिकार और उनके प्रयोग की प्रतिभा का सफल प्रदर्शन किया है। कवि ने कहीं भी अनावश्यक शब्दाडम्बर नहीं दिखाया, बल्कि उनकी कविता का प्रत्येक शब्द सार्थक, उपयोगी और भावर्गाभत है। कवि ने अपने इस काव्य ग्रन्थ में जिन छन्दों का प्रयोग किया है, उनके नाम इस प्रकार हैदोहा, छप्पय, चौपाई, सवैया,अडिल्ल, गीतिका, सोरठा, करखा, पद्धरि, चाल, जोगीरासा, कवित्त, त्रिभंगी, चर्चरी छन्दों की कुल संख्या ३८०६ हैं। ग्रन्थ-रचयिता कवि का परिचय इस ग्रन्थ के रचयिता कवि का नाम नवलशाह है। ये गोलापूर्व जाति में उत्पन्न हुए थे। इनका वेंक चन्देरिया और गोत्र बढ़ था। इनके पूर्वज भीषम साह भेलसी ग्राम में रहते थे। उनके चार पुत्र थे-बहोरन, सहोदर प्रहमन और रतनशाह । एक दिन पिता ने पुत्रों के साथ परामर्श किया कि अब कुछ धार्मिक कृत्य करना चाहिये । हमें जो राज-सम्मान और धन प्राप्त है उसका कुछ उपयोग करना चाहिये। तब दीपावली के शुभ महर्त में उन्होंने पंचकल्याणक प्रतिष्ठा का आयोजन किया, जिसमें दूर-दूर देश से लोग पाकर सम्मिलित हए। उन्होंने जिन बिम्ब विराजमान की; तोरण-ध्वजा-छत्र आदि से सुशोभित किया; प्रागत साधर्मी जनों का सत्कार किया और चार संघ को दान दिया। फिर रथ-यात्रा का उत्सब किया। चार संघ ने मिलकर इनका टीका किया और सबने एकमत होकर इन्हें 'सिंघई' पद से विभूषित किया। यह प्रतिष्ठा वि०सं० १६५१ के प्रगहन मास में हुई थी। उस समय बुन्देलखण्ड में महाराज जुझार का राज्य था। इनके पूर्वजों ने भेलसी को छोड़कर खटोला गांव में अपना निबास बनाया। इनके पिता का नाम सिंघई देवाराय और माता का नाम भानमता था। सिंघई देवाराय के चार पुत्र थे-नवलशाह, तुलाराम, घासीराम और खमानसिंह । श्री नवलशाह ने इस ग्रन्थ की रचना महाराज छत्रसाल के पौत्र और सभासिंह के पूत्र हिम्दुपति के राज्य में की । उन्होंने और उनके पुत्र ने मिलकर प्राचार्य सकलकीति के 'वर्धमान पुराण' के आधार पर इस ग्रन्थ की रचना की है। ग्रन्थ में १६ अधिकार रखने का कारण बताते हए कवि ने बद्धी सरस कल्पनामों का प्राधार लिया है। तीर्थकर माता ने सोलह स्वप्न देखे थे, महाबीर ने पूर्वभव में सोलह.कारण भावनाओं का चिन्तन करके तीर्थकर प्रकृति का बन्ध किया था; ऊपर १६ स्वर्ग है। चन्द्रमाकी १६ कलानों के पूर्ण होने पर ही पूर्णमासी होती है। स्त्रियों के १६ ही अंगार बताये गये है' पाठPage Navigation
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