Book Title: Bhadrabahu aur Kalpasutra Sankshipta Jain Itihas
Author(s): Manikmuni
Publisher: Biharilal Girilal Jaini

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Page 8
________________ निरन्तर बन्दे वीरम् शब्द विशेष प्रचलित है किन्तु साधुसमाज में उनका नाम श्रमण भगवान् महावीर विशेष प्रसिद्ध है क्योंकि साधुता रखने के लिये दो चीज़ की मुख्य अावश्यकता है= १- अनुकूल इष्ट पदार्थ मिलने से रक्त होकर एक जगह बैठ न रहना और अहंकार न करना। २ विरुद्ध दुखदाई पदार्थ मिलें अपमान होवे तो भी क्रोध प्रकट न करना न मन में दीनता लानी ये दो बातें महा वीर प्रभु में अधिक जानने योग्य और आदरणीय थीं। महावीर प्रभु ने माता पिता के मरे बाद ३० वर्ष की उम्र में दीक्षा ली थी और उन के केवल एक पुत्री पत्नी और बड़ा भाई था उन को पूछ कर दीक्षा क्षत्रियकुण्डनगर के उद्यान में जाकर तीसरे पहर के समय ली थी दीक्षा के समय हज़ारों किंवा लाखों आदमी विद्यमान थे उन के सामने निम्नलिखित प्रतिज्ञा की थी। . . करेमि, सामाइअं, सावज्ज, जोगं पच्चखामि जावजीवाए तिविहं तिविहेणं मणेणं वायाए भकरेमि न काखेमि करतंपिअन्नंन समणुज्जाणामि तस्सभंते पडिकमामि निन्दामि गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि । इस प्रतिज्ञा का रहस्य यह है कि मैं आज से यावत् जीवन कोई भी पाप का कार्य मन वचन और काया से न करूंगा न कराऊगा न करने वाले को भला जानूंगा और अपने आत्मा को शरीर से भिन्न मान कर शरीर और शरीर के साथ लगी

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