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कहने लगे ब्रह्मतत्वको जानने वाले थे इस लिये ब्रह्मा भी कहलाये सब कलाएं निर्माण करने से विधाता भी कहलाने लगे कुम्भार प्रजापति जो कहा जाता है उससे भी वही मतलब है कि • उन्होंने पहिला कुम्भारका धंधा बनाया था चारमुख वाले ब्रह्मा क्यों कहलाये उस का कारण भी उससे मालूम होता है जब उन्होंने धर्मोपदेश दिया तोएक दिशामें उनका मुंह मानेसे तीन दिशा में बैठने वाले को विमुख होना पड़ता इस लिये तीन दिशा में उसके सदृश मूर्ति देवतों ने बैठाई थीं,सब लोगों का आकर्षण होवे इस लिये बाजे भी मनोहर बजाते थे जैसे आज प्रदर्शनी मेंप्राकर्षित करने को उत्तम दृश्य रक्खे जाते हैं ऐसे ही देवतों ने भी सब की दृष्टि खींचने को मनोहर दृश्य बनाये थे इसके लिये नीचेका श्लोक जैनी पढते हैं।
अशोकबृक्षः सुरपुष्पवृष्टि दिव्यध्वनिश्चामरमासनंच। भामंडलं दुर्बुभिरातपत्रं
सत्पतिहार्याणि जिनेश्वराणां (१) और जो चौतीश अतिशय हैं वह उसी समय प्रकट हुए थे जिनमें चार जन्म से ही तीर्थकरो में होते हैं ११ कैवल्य ज्ञान प्रकट होने पर और १६ देवता करते हैं।
ऋषभदेव ने भरत को दीक्षाके समय राज्य दिया था ऐसे ही और-६६ पुत्रों को भी और २ देश दिये।
देशों के नाम ऋषभदेव के जो सौ पुत्र थे उनको उन्होंने जमीन दी