Book Title: Bhadrabahu aur Kalpasutra Sankshipta Jain Itihas
Author(s): Manikmuni
Publisher: Biharilal Girilal Jaini

View full book text
Previous | Next

Page 24
________________ (२२) दूसरे दयाखण्डक थे उन में से जो दयापक्षी थे वे साधुओं से मिलकर दया प्रचार कराते थे जिससे दया धर्म का सर्वथा नाश नहीं हुआ किंतु एक एक यज्ञ में जो जारों बकरे मारे जाते थे यह पहिले न था क्योंकि कल्पसूत्र में वह वर्णन नहीं है शांतिनाथ कुंथुनाथ अरनाथ तीन चक्र वर्ती महाराजा स्वयम् तीर्थकर भी हुवे हैं जिनकी नगरी हस्तिनापुर थी जैनिओं में वह नगर परव्यात है क्योंकि ऋषभदेव की साधु होने के बाद पहिली पारणा वहां हुई थी बारह चक्रवर्ती किस के जमाने में हुए यह भी इस कल्पसूत्र से ज्ञात होगा। वासुदेव । जैनियों में चक्रवर्ती से आधी संपदा के मालिकको वासुदेव कहते हैं उनमें पहिला त्रिपृष्ट वासुदेव हुआ था जो महावीर प्रभु का जीव था जिसने अपने शय्योपालक को गहरी रात तक बाजो बजवाने का निषेध करने पर भी बजवाने से उसी समय गरम रांग बनाकर कानमें डलवायाथा वह पापथा उसका फल महावीरके जन्ममें ही कानमें कीला लगनेका भोगनापड़ा वह सब वातें कल्पसूत्र से ज्ञात होती हैं कृष्ण भी वासुदेव थे और नेमि नाथ तीर्थंकर के पिता समुद्र विजय के. दश भाइ थे उस में बसुदेव नाम के भाई के पुत्र कृष्ण थे इसीलिये वासुदेव कहाते थे लिखा है कि वो एक सच्चे धर्मात्मा पुरुष थे। कैलास पहाड़। जैनियों में अयोध्या से थोड़ी दूर एक पहाड़ बताते हैं जिस का नाम कैलास है उस पर भरत राजा ने २४ तीर्थंकरों के प्रतिबिंब बनाये थे और मनोहर मदिरमें स्थापन किये थे आज

Loading...

Page Navigation
1 ... 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36