Book Title: Bhadrabahu aur Kalpasutra Sankshipta Jain Itihas
Author(s): Manikmuni
Publisher: Biharilal Girilal Jaini

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Page 34
________________ - ( ३२ ) कल्पसूत्र में है दिगंवर भाइयों ने उनको अनुचित मान कर कल्पसूत्र को अमान्य कर नये ढंगसे और ग्रंथ पुराण नाम से कोई बनाया होगा अस्तु हमारी विद्वान् इतिहास प्रेमित्रों से प्रार्थना है कि जो आजकल असंभवित बात मालूम पड़ती है उस के कारण उस ग्रन्थ को जिसमें वह बात लिखी है अमान्य करें यह ठीक है परन्तु उसकी ऐतिहासिक और उपयोगी बातों का अभ्यास न करना न उनसे जैनियों का प्राचीनत्व बताना यह एक विचारने योग्य बात है । आज नयी शोध ने पूर्व की बहुत बातों को झूठी किंवा असं भवित बना दीहै ऐसे ही भविष्यमें जो विद्या बढ़ेगी किंवा घटेगी तो आज की बात उस समय पर झूठी हो जायेंगी जो माज कल लोग प्रत्यक्ष सच्ची देख रहे हैं। नयी विद्या वाले पूर्व की सब बातें होसी में उड़ा कर शास्त्रों की उपेक्षा किंवा अपमान किया करते हैं किन्तु पश्चिम के लोगों को धन्यवाद है कि कल्पसूत्र जैसे ग्रंथ को पढ़ कर विदेशी भाषा में भाषांतर कर और लोगों को भी ज्ञानामृत चखाते हैं। जीव रक्षा सत्य वचन अस्तेय ब्रह्मचर्य निष्परिग्रहत मादि साधु के २७ गुणों का वर्णन किंवा महावीर प्रभु क चरित्र किंवा तीर्थंकरों का अतर तो उस में से अवश्य देखन चाहिये जो विद्वान् देखेंगे तो हिंदी भाषामें सरल गद्य भाषा तर भी गुजराती के अनुसार हो सकेगा और दूसरे सूत्रों का भाषांतर और समालोचनाएं भी करनी आवश्यक होंगी और हिंदी के भी प्राचीन साहित्य का सदुपयोग होगा।

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