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- (२१) छोड़ दिया तो शिव शंकर कल्याण करने वाले कहलाये और जैसे अन्य लोगों में भंगेरु, गंजेरुओं ने भांग गांजा पीना शुरू कर शंकर को भी भांग पीने वाला बताया ऐसे जैनियों ने नहीं माना किन्तु उन्हों ने मुक्तिप्रद शिव को माना है और वह दूषण रहित हैं।
__ भारत वर्ष के चक्रवर्ति राजा
जैनियों में एक सब से महान् राजा को चक्रवर्ति मानते हैं जिस में पहिला भरत चक्रवर्ती हुआ था वह ऋषभ देव का ही पुत्रथा और सब देशों के राजाओं का राजा था आर्य अनार्य सब उसके कब्जेमें थे और उनके साथ युन्द्रहुआथा यहभी इसकल्पसूत्रमें वर्णन है अंतमें भरत ने भी वैराग्य पाकर राज्य छोड़ा उनके बंश में बहुत वर्ष जाने बाद दूसरे तीर्थंकर अजितनाथ हुए उन के समय में सगर चक्रवर्ती हुआ जिस के साठ हज़ार पुत्र देवताओं ने जला दिये थे इस बात को सुन.कर राजा को जो दुःख हुआ उस को दूर करने को इन्द्र ने क्या युक्ति की वह भी खास देखने योग्य है जैनियों में सब से ब्राह्मण अधिक पूजनीय थे राजा लोग उन की बड़ी इज्जत करते थे वे माहण नाम से पुकारे जाते थे जिन का कर्तव्य साधुओं के धर्मोपदेश के बाद में सर्वत्र फिर कर गृहस्थों को सदाचारी बनाना था
और गृहस्थ के संस्कारोंका कराना भी ब्राह्मणों का कर्तव्यथा जब ब्राह्मणों ने जीव हिंसा मिश्रित वेद बनाये उस समय से साधु ब्राह्मणों में परस्पर विरोध हुमा राजाओं के वे पुरोहित थे इस लिये प्रजावर्ग सब उनके कब्जे में आ गया था किन्तु ब्राह्मणों में भी दो भेद थे एक दया पालक और