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वैराग्य पाकर दीक्षा ले भद्रबाहु की संप्रदाय में साध्वियें हुई जिस की गाथा यह है ।
जखाय जखदीना भूयातहचेव भूयाअ । सयणावेणारेणा भयणीओ थुलिभद्दस्स ॥ स्थूलभद्र और वज्रस्वामी ।
भद्रबाहु के शिष्य स्थूलभद्र शीलव्रत से अधिक प्रख्यात हैं उन्होंने जिस वेश्या के घर में बारह वर्ष रहकर भोग विलास किया था वहां साध होकर चार मास वर्षाऋतु में रहे किन्तु वेश्या में लिप्त न हुए ऐसा होना बहुत दुर्लभ है ।
स्थूलभद्र के शिष्य प्रशिष्य संप्रदाय में बजू स्वामी हुए हैं उनका चरित्र भी अधिक माननीय है छोटी उम्र याने दूध पीने के समय में वैराग्य आया तब उन्होंने माका राग छुड़ाने को कृत्रिम ढौंग किया परश्च साधुहुए और पिता के पास चलेगये और राज्यसभा में माताने बहुत लोभदिया तो भी संसारवासना से विरक्त रहे वह एक जैन संप्रदाय में ऐसे प्रभाविक पुरुष हुए हैं कि आज तक उनकी पारमार्थिक वृत्ति प्रसिद्ध है। त्यागवृत्ति और ब्रह्मचर्य में इतना ही कहना बस होगा कि एक करोड़पति की कन्याने प्रतिज्ञा की कि मैं तेजस्वी तपस्वी बाल ब्रह्मचारी वजूस्वामी के साथ अपना विवाह करूंगी कितनेक वर्ष जाने के बाद पिताने उसका विवाह और जगह करना चाहा किंतु कन्या ने स्वीकार न किया वजूस्वामी देशांतरों में फिरते २ वहां आये और कन्यापिता कन्या को धन के साथ लेजाकर वजू स्वामी को कन्या देने लगा वज्रस्वामी ने संसार की असारता समझाकर कन्या को वैरागिणी बनादी और उस की दीक्षा के महोत्सव में वह धन लगा दिया