________________
( २४ )
भद्रबाहु। भद्रबाहु और बराह मिहिर दोनो भाई दक्षिण देशके रहने घाले थे और विद्याविशारद ब्राह्मण थे जब दोनों ने जैनधर्म के वैराग्य तत्वमय धर्मोपदेश सुने उस समय संसारको असार मान कर दीनाली और साधु हो गये जैन सिद्धांत मब पढ़लिये और भद्रबाहु की विशेष योग्यता देखकर गुरुपहाराजने भद्रबाहु को आचार्य पदवी दी आज भद्रबाहु किंवा वराहमिहिर को कितने बरस हुए यह कल्पसूत्र से स्पष्ट ज्ञात हो जाता है बराहमिहिर को आचार्य पदवी न मिलने से जैनधर्म का वह विरोधी होगया और मरने बाद भी देवयोनि से दुःख देने लगा भद्रबाहु से लोगों ने प्रार्थना की तब उन्होने उवसगाहरंस्तोत्रं बनाकर दिया आज भी जैनी निरंतर उसको पढते हैं क्योकि इस से वराह मिहिर का विघ्न दूर हुआ था और दूसरे सादिका भी भय दूर होता है।
मागधी और संस्कृत । : पहिले लोक भाषा प्रायः मागधी थी यह सब जानते हैं
और मागधी से कितनेक शब्द थोड़ा रूपांतर पाकर आज कल की सब भारतवर्ष की भाषाएं हुई हैं गुजराती पंडित अव मुक्त कंठ से स्वीकार करते हैं कि गुजराती की माता मागधी है इस प्रचलित भाषा में तीर्थकरोंने अपने सब सूत्र बनाये कि थोड़ी धुद्धि वाले शिष्य भी उस को याद करें और समझ लेवें मागधी आजाल प्रचलित न होने के कारण विशेष कठिन भी किसी जगह हो जाती है इस लिये समयज्ञ साधुओंने उस की संस्कृत टीकाए भी बनादी हैं और गुजराती भाषा