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(२८) नहीं नो जो ग्रंथ आज अंग्रेज जर्मन किंवा जैनेतर पढ़ कर बोध से जैन को भिन्न सिद्ध करते हैं तो हमारे यत्किचित् मंतव्य वाले उस ग्रंथ से विमुख कैसे रहते ?
. साधुओं के दशकल्प अचेलूक, उद्देशिक, शय्यातर,कृतिकर्म, व्रत,जेष्ठ प्रतिक्रमण, राजपिंड, मासकल्प, चतुर्मासीकल्प,
(१) जीर्णप्रायः वस्त्र रखना ( २ ) जो साधु के लिये ही बनाया है वह आहार न लेना (३) जिस के मकान में रहे उस का आहारादि न लेना [ ४ ] छोटा साधु बड़े को बंदन करे [५] पांचमहाव्रतपाले [अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य, निष्पग्ग्रिहता, यह पांच महाव्रत हैं ] ( ६ ) दूसरी दीक्षा में जो बड़ा है वह बड़ा कहलावे अर्थात् उम किंवा पहली दीक्षाका पर्याय गिनती में नहीं आता (७) यदि कुछ अपना पाप किंवा मलीनता होवे तो उसको प्रकट करना उसका पश्चात्ताप करना गुरु के पास दंड लेना वह प्रति क्रमण है (८) राजाओं का माहारादि न लेना (8) विना खास कारण वर्षाऋतु विना एकजगह एक मास से अधिक न रहना वह मासकल्प है। (१०) चार मास वर्षा ऋतुमें एक जगह रह कर धर्म ध्यान करना वह चतुर्मासी कल्प कहलाता है।
. महावीर के चौमासे महावीर प्रभु ने ३० वर्ष की उम्र में दीक्षा ली और ७२ वर्ष की उम्र में मोक्ष पाया १२ वर्ष तक धमों पदेश विन आत्महित के लिये फिरते रहे फिर ३० वर्ष तक कैवन्यज्ञान पाकर सर्वत्र धर्मोपदेश दिया और ४२ चौमासे महावीर प्रभुने कहां किये यह भी वर्णन उसमें प्रोता हैं अनेक नगरियों के जो नाम आते हैं उन,