Book Title: Bhadrabahu aur Kalpasutra Sankshipta Jain Itihas
Author(s): Manikmuni
Publisher: Biharilal Girilal Jaini

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Page 25
________________ ( २३ ) भी उस गाथा को पढ़ते हैं । चतारी अट्ठ दसदोय वंदिया जिणवरा चौविस परमठ निष्ठ अट्ठा सिद्धा सिद्धिं मम दिसंतु जगचिंतामणि जगनाह । जगगुरु जगरख्खण ॥ जग बंधव जग सत्थवाह । जग भावविअ ख्खण ॥ अठावय संठ वियरूप । कमट्ट विणासण ॥ चवी संपिजिणवर | जयंतु अप्पडिहयसासण || कैलास का दूसरा नाम अष्टापद है मंदिर बनाने के बाद कोई वहां जाकर मंदिर की रत्न मय प्रतिमाओंको लोभसे खंडन न कर डाले इस लिये पीछे वहां पर दूसरे राजाने चारों तरफ खोइ खोदकर गंगा का पानी भर दिया था आज कोई वहां नहीं जा सक्ता किंतु रावन विमान में बैठकर गया था और उसने ऋषभदेव की प्रतिमा के सामने नृत्य के साथ पत्नी को साथ लेकर भक्ति की थी और स्वयं महावीरके शिष्य गौतम इंद्रभूति तपश्चर्या की लब्धि के बल से वहां गयेथे उस अष्टापद पहाड़ पर ऋषभदेव प्रभुका मोक्ष हुआ है उनकी समाधि अर्थात् मसंस्कार वर्हा हुआ था वह भी कल्पसूत्र में अधिकार हैं । २४ तीर्थंकरों के कितने साधु साध्वी श्रावक श्राविका थीं कितने ज्यादा ज्ञानी कितने ज्यादा तपस्वी कितने विद्या arat कितने कालतक मोक्ष मार्ग कायम रहा एक तीर्थंकर के बाद दूसरा तीर्थंकर कब हुआ यह भी कल्पसूत्र में हैं नवीन गिनती बालों को उसके समझ ने में पहिले बहुत कठिनता होगी तो भी अभ्यास से वह सत्र कठिनता मिट जाती है

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