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(१६) पिता के पुत्रोत्पत्ति मानते हैं वह जैसी असंभव वात है और हास्य जनक है ऐसी ही तिस्करणीय भी है किंतु कल्पसूत्र से ज्ञात होता है कि बीज मात्र संघ चीज रहती हैं। __ईश्वर कर्तृत्व सिद्ध करने वाले अरूपी से रूपा पदार्थ होना मानते हैं और रूपी ईश्वर मानने वाले मोकार ईश्वर का उत्पन्न होना मान कर इनके द्वारा सृष्टिका उत्पन्न होना मानते हैं अथवा सृष्टि को माया जाल मानते हैं और आत्मा को एकांत निर्मल अथवा सृष्टि सदा अनित्य है ऐसा मानते हैं इन सब लोगों को इस कल्पसूत्र से बहुत बोध मिलता है जो कोई धर्म किंवा मंतव्य का कदाग्रह छोड़कर ऐतिहासिक दृष्टि से उस कल्पसूत्र को देखेगा तो मालूम होगा कि वह सूत्र दुनिया को अनादि सिद्ध करता है और इस जमाने में जो भारत वर्ष में कलाएं दीखती हैं वह करोड़ों के करोड़ों वर्ष पहले की हैं यह बताता है।
जैनीलोग वेदबाह्य हैं यह दूषण अन्य लोग जैनियों को देते हैं वह कल्पसूत्र से दूर होता है मूलसूत्रों से मालूम हाता है कि जो वेद पुराण इतिहास हैं वह पहिले से हैं नाम भी वही हैं अब जौनियों के महाबीर प्रभु के विषय में उन का पिता उन की माता से कहता है कि तेरा बेटा चार वेद छै अङ्ग इतिहास पुराण का वेत्ता होगा दूसरों को सिखाने वाला होगा । और जब वे सर्वज्ञ हुए तब वेदपाठी ब्राह्मणों का शंका समाधान वेद पदों से किया है तो बताइये कि जैनी वेदवाह्य कैसे हो सकते हैं ? और जैनी वेद से विरुद्ध कैसे हैं ? जिस की इच्छा हो यदि वह अंग्रेजी वा गुजराती मागधी वा संस्कृत पढ़े हों तो शीघ्र मंगाकर खुशीसे पढ़े। हिन्दीका भी काव्य भाषांतर राजा