Book Title: Bhadrabahu aur Kalpasutra Sankshipta Jain Itihas
Author(s): Manikmuni
Publisher: Biharilal Girilal Jaini

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Page 15
________________ जैन ग्रन्थ लिखने का मुख्य प्रचार प्रायः महावीर प्रभु के ६८० वर्ष वाद याद करनेकी शक्ति घट जाने से प्रारम्भ हुआ है कन्पसूत्र भी उसी समय लिखा गया था उस समय की प्रतियें अव भी ताड़पत्र पर लिखी हुई जैसलमेर खंवात पट्टण के भंडार में देखने में आती हैं। ___ कल्पसूत्र के साथ उस की कल्प मुबोधिका टीका भी छपी है ६) रुपये में हीरालाल हंसराज जामनगर और बारह भाने में देवचन्द लालभाई सुरत से मिलती है। जो स्थिविरावली, (स्थिविर आचार्य) महावीर प्रभुके बाद हुई है उसका इतिहास सूत्र लिखने वाले देवर्द्धिक्षमाश्रमण का लिखा हुआ उसमें है और साधुओं की समाचारी प्राय: चौमासे में कैसी होनी चाहिये यह अंत में दी हुई है वह उस से पहिली बनी हुई है और उस समाचारीके अंतमें यह लिखा हुमा है कि इस कल्प सूत्र के पठन करने वाला भव्यात्मा हा जाता है और उसी जन्म किंवा दुसरे तीसरे अथवा पाठवें जन्म लक अवश्य मोक्ष पाता है। ओज जो लोग जैन को बौधकी शाखा कहते हैं उन सबसे मार्थना है कि वे इस ग्रंथको ज़रूर पढ़ें और २४ तीर्थंकरों का समयज्ञान मिलावें उससे यह ज्ञात होजायगा कि जैन लोग सब से प्राचीन हैं इतिहास शोषने में बहुत दिन तक प्रयास करने पर भी जो सच्चा सिद्धान्त है वह अनुमान पर निर्णय करना पड़ता है फिर भी बहुत से शंका स्थान रह जाते हैं परञ्च इस कल्पसूत्र के अकेले के पढ़नेसे ही वह प्रकाश होजाता है कि कुछ भी

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