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(६ ) करुणा दृष्टि से आंखों में आंसु पाजाते थे जिस के विषय में कनिकाल सर्वज्ञ हेमचन्द्राचार्य ने लिखा है कि
कृतेऽपराधेऽपि जने कृपा मंथरतारयोः । ईषदाष्पार्द्रयोर्भद्रं श्रीवीरजिननेत्रयोः॥
महावीर प्रभु ने उन कष्टों के सहन करने के साथ २ तप भी बहुत किया था उन्होंने १२ वर्ष साड़े छ महीने में केवल ३६ दिन भोजन किया था इस प्रकारका कष्ट सहन करके व्रत धारण करने से उनके मोह अज्ञान आदि सब नष्ट होगये और वह भास्मिक सुख को भोगने लगे अर्थात् सचिदानंद, ब्रह्म, सर्वज्ञ, साकार ईश्वर होगये यहांतक हुवा कि वह कभीभी किसी को धार्मिक उपदेश न देते थे परन्तु जब कैवल्य ज्ञान प्राप्त हुवा तो प्राणिमात्र का ३ काल का वृत्तान्त जानने में समर्थ हो गये और प्राणिमात्र के हितार्थ उपदेश दियो उन्हें वैशाषशुक्ल दशमी को कैवल्यज्ञान प्राप्त हुआ था वह स्थान जहां उन को कैवल्य ज्ञान प्राप्त हुआ था गिरड़ी स्टेशन से करीव १० माइल की दूरी पर रज्जु वालिका नदी, जो वराटक नाम से प्रसिद्ध है उसके तट पर श्यामाक गृहस्थका खेत है आज वहां शान्त स्थान में १ रमणीय मन्दिर और धर्मशाला विद्यमान हैं और वह वहां थोड़ा सा उपदेश देकर महसेन वनमें आये थे वहां देवतों चे उनके लिये सभामण्डप बनाया था महसेन बन पटना और गया के बीचमें है, जहां पर आज कल तालाव के भीतर जलमें रमणीय मन्दिर बना हुवा है जिस समय उन्होंने वहां उपदेश