Book Title: Bhadrabahu aur Kalpasutra Sankshipta Jain Itihas
Author(s): Manikmuni
Publisher: Biharilal Girilal Jaini

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Page 9
________________ (७) हुई उपाधियें जो जड़ हैं उन का मोह छोड़ कर आत्मभावना में ख्याल रखूगा शत्रु मित्र पर भी समभाव रखूगा। वह प्रतिज्ञा किये बाद संसारी संबंधी जो भाई कुटुंब वगैरह हैं उन को छोड़ कर दूसरी जगह गये और अनेक प्रकार के जो अनुकूल प्रतिकूल उपसर्ग (मुख दुःख) प्राप्त हुवे व समताभाव से सहन किये । ___उस सहिष्णुता का वर्णन और महावीर पकी वीरता देख कर उनका नाम श्रमण भगवान् महावीर साधु लोग कहने लगे क्योंकि श्रमण नाम जो श्रमको विना खेद सहन करे उसका है वह उन्हों ने अच्छी तरह से बिना खेद सहन किया था महावीर प्रभुको एक समय पर जो कष्ट आया है वह यह है कि कानमें लकड़ीकी बारीक कीलें बनाकर जो परस्पर मिल जावें इस प्रकार से एक गोपाल ने जो पूर्व जन्म का वैरी था लगाई थीं उनको निकालने में इतना कष्ट उन्हें सहन करना पडा कि अनंत बली होनेपर भी मुंहमेंसे चिंघाड निकलने लगीं कहते हैं कि वो इतनी भयंकर थीं कि पहाडों तक उसकी गर्जना पहुंच गई थीं। साधनों के दश धर्म उन्हों ने पालन किये थे वह नीचे लिखे हैं। तांति, आर्जव, मार्दव, तप, निर्लोभ, संयम, सत्य, शौच अकिंचन, ब्रह्मचर्य। - क्षमा में इतना कहना ही बस होगा कि चंदकौशिक दृष्टिविष सर्प सबको दृष्टि से ही जला देता था उस भीतिसे रास्ता बंद होगया था महागर प्रभु ने सब जीवों का कष्ट दूर करने को

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