Book Title: Ashtaprakari Navang Tilak ka Rahasya Chintan
Author(s): Bhuvanbhanusuri
Publisher: Divya Darshan Trust

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Page 6
________________ बहुमान, बारह व्रत आदि कितना अक्षयधन पाया । इतना ही नहिं, परन्तु अपने १८ देश के राज्य में उन्होंने सात व्यसनों को देश निकाला दिला दिया, और जीवदया सर्वत्र फैला दी । यह सब सच्ची आत्मलक्ष्मी है । इसीसे तो गणधर पद का पुण्य पैदा हुआ । वे देवलोक में गये हैं, अगली(आगामी) चौबीसी में प्रथम तीर्थंकर भगवान के गणधर होकर मोक्ष जायेंगे । पाच कौडी जितनी मामुली-सी लक्ष्मी प्रभु के चरणों में अर्पित की तो वह उत्तरोत्तर मोक्ष तक बढती ही चली और अक्षयलक्ष्मी ही बनी न ! बस, स्वद्रव्य से भगवान की पूजा करते हुए यही भावना होनी चाहिये कि, “मेरे अहोभाग्य कहां कि मेरी लक्ष्मी त्रिलोक नाथ के चरणों में जाय। ओर ऐसी उत्तरोत्तर बढती हुई आत्मलक्ष्मी दिलाते हुए अन्त में मुझे अक्षय मोक्ष लक्ष्मी दिला दे । द्रव्यपूजा के साथ ऐसी भावना हो, तभी ऐसे सुंदर भाव उछलेंगे। Jain Education International Private Personal Use Onlyww.jainelibrary.org

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