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प्रजा का कल्याण साधा, विषय-विलास में उदासीन बनकर आत्मा की गुणऋद्धि को सच्ची समृद्धि मानी । संसार की नश्वरऋद्धि को महत्व नही दिया । प्रभु ! धन्य है आपकी अनासक्ति ! धन्य है आपकी कल्याणकारिता ! प्रभु की इस सर्वत्र परहितकारिता की विरासत लेने जैसी है। __ (३) श्रमण अवस्था :- अहो प्रभु !
आपने वर्ष भर में ३ अरब ८८ करोड सोना मुहरों का दान देकर चारित्र लिया । केवलज्ञान पाने तक आप सदा काउस्सग्ग ध्यान में रहे । सुख हो या दुःख, शत्रु हो या मित्र, मान हो या अपमान, सबमें आपने समभाव रखा । बाह्य-अभ्यन्तर तप द्वारा आपने विपुल कर्म-निर्जरा की । घन घाती कर्म का क्षय किया । आपके वार्षिक दान का विचार करके मुझे धन की मूर्छा
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