Book Title: Ashtaprakari Navang Tilak ka Rahasya Chintan
Author(s): Bhuvanbhanusuri
Publisher: Divya Darshan Trust

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Page 41
________________ श्री अरिहंत प्रभु की अवस्था त्रिक का चिन्तन । देवाधिदेव की पूजा करने के बाद गभारे से बाहर आकर प्रभु की पिंडस्थ- पदस्थ और रुपाहीत इन तीन अवस्थाओं का चिन्तन करना है । पिंट-देह । प्रभु ने देह में रहकर कौन-कौन से गुण साधे, कौन-कौन सी साधना की, इसका विचार है पिंडस्थ अवस्था का चिन्तन उसमें जन्म अवस्था, राज्य अवस्था और श्रमण अवस्था इन तीनों का विचार करना है। (१) जन्म अवस्था: हे मेरे नाथ ! आप कैसे तीर्थंकर नाम कर्म आदि उत्कृष्ट पुण्य का समूह लेकर आये कि आपका जन्म होते ही तीनों जगत में प्रकाश पल जाता है । Jain Education International Private X ersonal Use Onlyww.jainelibrary.org

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