Book Title: Ashtaprakari Navang Tilak ka Rahasya Chintan
Author(s): Bhuvanbhanusuri
Publisher: Divya Darshan Trust

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Page 17
________________ दोनों से एकदम विलक्षण, जगमगाता हुआ, प्रकाशमय और दूसरे को प्रकाशदाता का स्वरूप धारण करता है। उसी प्रकार मैं भी मोहमूढ जगत के संयोग में से पैदा हुआ होने पर भी इस दीपक पूजा से जगत से विलक्षण ऐसा शुद्ध ज्ञानादि प्रकाशमय ब और दूसरे को उस प्रकाश का दाता बर्नु ।' अथवा ऐसा चिन्तन भी किया जा सकता है कि, हे प्रभु ! यह द्रव्य-दीपक आपके भावदीपक केवलज्ञान का स्मरण कराता है, लोक में मंगल रूप माना जाता है । इसीलीये लोक दीपक से दिवाली मनाता है । इस पूजा से मुझे सम्यग्ज्ञान से लेकर केवलज्ञान तक सब कुछ मिले ।' नित्य दिपकपूजा में ज्ञान प्रकाशमय सम्यग्ज्ञान की प्रार्थना करने से उसके सुसंस्कार जमा होते जाते है । इससे अज्ञानता टलती है और सम्यग्ज्ञान पाने का आदर होता है। - Jain Education Internationat Private Personal Use Onlyww.jainelibrary.org

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