Book Title: Ashtaprakari Navang Tilak ka Rahasya Chintan
Author(s): Bhuvanbhanusuri
Publisher: Divya Darshan Trust

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Page 29
________________ (७) कंठ पर तिलक पूजा सोल पहर प्रभु देशना, कंठे विवर वर्तुल । मधुर ध्वनि सुर नर सुणे,तिणे गले तिलक अमूल ॥ _प्रभु के कंठ पर तिलक करते हुए यह भावना करनी है कि प्रभु ! आपने तो इस कंठ से तत्व की वाणी वरसाने का अनुपम और अतिभव्य उपकार किया । इस कंठ की पूजा करते हुए मुझे इस उपकारी प्रवृति की खूब अनुमोदना हो । मुझमें भी परोपकार वृत्ति आये ।' अथवा ऐसी भावना हो कि, 'आपके कंठ से निकलती हुई वाणी में अपार करुणा है, तो मुझे भी ऐसा कंठ मिले कि जिससे निकलती हुई वाणी में करुणा बरसती हो । कठोरता का नाश करके कोमलता खिलाने का यह सुन्दर उपाय है। Jain Education Internationat Private Ĉersonal Use Onlyww.jainelibrary.org

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