________________
¡
(९) नाभि पर तिलक पूजा
रत्नत्रयी गुण उजली, सकल सुगुण विश्राम | नाभि-कमलनी पूजना, करतां अविचल धाम ॥
प्रभु ! आपके नाभि कमल पर तिलक करते हुए इतना मांगता हूं कि, 'जैसे नाभि शरीर के मध्य में है, उसी प्रकार आत्मा के मध्य में आठ उज्ज्वल रुचक प्रदेश हैं । उनमें आत्मा के उज्ज्वल ज्ञान, दर्शन और चारित्र है । उन्हें विकसित करके आपने आत्मप्रदेशों में प्रकट कर लिया । इसी तरह नाभिकमल पर तिलक से मेरी आत्मा के रुचक प्रदेश में रहे हुए ज्ञान दर्शन चरित्र समस्त आत्मप्रदेशो में प्रकट हों । मिथ्यात्व के अन्धकार को दूर करके । सम्यक्त्व का तेज प्रगटाने के लिये यह भव्य उपाय है ।
पूर्व बताये गये अष्टप्रकारी पूजा और
Jain Education International Private 3rsonal Use Onlyww.jainelibrary.org