Book Title: Ashtaprakari Navang Tilak ka Rahasya Chintan
Author(s): Bhuvanbhanusuri
Publisher: Divya Darshan Trust

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Page 35
________________ भावना का दिव्य तेज चमक रहा है । __ हे देवाधिदेव ! आपके दो कान भी कैसे निर्दोष हैं ? इनसे किसीके भी झूठे दोषों का श्रवण करके ईर्ष्या-वर्धक पाशवी वृत्तियों का पोषण नहिं हुआ है । रागादि विकार पूर्वक व कुसंस्कारों को भडकाने वाले शब्दों का श्रवण इनसे नही हुआ है । विवेक के सहारे अशुभ संस्कारो का नाश करके आपने श्रवण शक्ति का महान सदुपयोग किया है। ___ परमात्मन् । आपके इस पुण्य देह से हिंसादि किसी पाप का सेवन नही हुआ है। इस शरीर के द्वारा गाँव-गावँ विचरकर आपने अनेक जीवों के संसार-बंधन तुडाये । सर्व कर्म का क्षय करके आपने केवलज्ञान और केवल दर्शन गुण प्रगटाये। __ हे करुणा समुद्र । आपका दर्शन चन्द्र Jain Education International Private 3 rsonal Use Onlww.jainelibrary.org

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