Book Title: Ashtaprakari Navang Tilak ka Rahasya Chintan
Author(s): Bhuvanbhanusuri
Publisher: Divya Darshan Trust

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Page 27
________________ (५) मस्तक पर तिलक सिद्ध शिला गुण उजली, लोकान्ते भगवंत । वसिया तिणे कारण भवि, शिर शिखा पूजंत ॥ प्रभु के मस्तक पर तिलक करते हुए ऐसी भावना रखनी चाहिये कि, प्रभु ! शरीर का सबसे उत्तम अंग जैसे मस्तक गिना जाता है, उसी प्रकार ब्रह्मांड में लोकाकाश लोकपुरूष के मस्तक रूप जो उंचा निर्मल भाग सिद्ध शिला है, वहाँ जाकर आपने शाश्वत बास किया है । आपके निर्मल भाग रूप मस्तक की पूजा के प्रभाव से मुझे भी सदा के लिये सिद्ध शिला पर वास मिले । अथवा ऐसा चिन्तन भी किया जा सकता है कि आपके मस्तक में, दिमाग में और मन में अपार समाधि की स्वस्थता से निरवधि आनन्द है । आपके मस्तक की पूजा से मुझे भी ऐसी समाधि मिले । मन की मस्ती का आनन्द लेने का यह अजोड उपाय है । Jain Education International Private Fersonal Use Onlyww.jainelibrary.org

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