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(४) दायें-बायें कंधे पर तिलक
मान गयुं दोय अंश थी, देखी वीर्य अनन्त । भुजाबले भवजल तर्या, पूजो खंध महंत ।।
कंधे पर तिलक करते हुए ऐसी भावना रखनी है कि, प्रभु ! धन्य है आपको कि आपकी अनन्त शक्ति होने पर भी मामुली दुश्मन के सामने भी आपने अभिमान नहीं किया। मुझमें भी ऐसी वृत्ति हो कि कहीं भी मैं बिल्कुल अभिमान न करूं । गर्वमद को खत्म करने का यह श्रेष्ठ उपाय है।
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