Book Title: Ashtaprakari Navang Tilak ka Rahasya Chintan
Author(s): Bhuvanbhanusuri
Publisher: Divya Darshan Trust

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Page 28
________________ (६) ललाट पर तिलक पूजा तीर्थंकर पद पुण्य थी, त्रिभुवन जन सेवंत । त्रिभुवन तिलक समा प्रभु, भाल तिलक जयवंत || प्रभु के ललाट पर तिलक करते हुए यह भावना रखनी कि प्रभु त्रिलोक के इन्द्र भी अपना मस्तक आपके चरणों में झुकाते है, अर्थात आप उनके शिरोधार्य हैं, मेरे भी शिरोधार्य बनें, तो मेरा अहोभाग्य । आपके ललाट में रही हुइ पूज्यता मुझमें सच्चा पूजकत्व (सेवकत्व) उत्पन्न करने वाला, बने, इस भावना से आपके ललाट पर तिलक करता हूँ । इससे मेरे ललाट पर आपकी आज्ञा का तिलक हो । अथवा आप त्रैलोक्य लक्ष्मी के ललाट पर तिलकभूत हैं । मेरे अहोभाग्य कि आपके ललाट पर मुझे तिलक करने को मिलता है । आज्ञा पालन करने में शूरवीरता प्रकट करने का यह अद्वितीय उपाय है । Jain Education International Private Personal Use Onlyww.jainelibrary.org

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