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इस रहस्य भरी भावना से नित्य अंगूठे पर तिलक किया जाय, तो इसके शुभ संस्कार से रागादि विकार दबाने का बल मिलता है।
(२) दायें-बायें घुटने पर तिलक जानु बले काउस्सग्ग रह्या, विचर्या देश विदेश । खडां खडां केवल लां, पूजो जानु नरेश ॥
घुटने पर तिलक करते हुए ऐसा चिन्तन करना कि प्रभु ! चरित्र लेने के बाद केवलज्ञान न हुआ, तब बरसों तक आप घुटने मोडकर, पालथी लगाकर जमीन पर बैठे ही नहीं, किन्तु पाँवों पर खडे रहकर कायोत्सर्ग व ध्यान में रहे, उसी प्रकार मुझे भी इस तिलकपूजा से ऐसा बल मिले कि मैं भी सब कुछ वोसिराकर कायोत्सर्ग और ध्यान में मन लगाऊं ।'
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