Book Title: Ashtaprakari Navang Tilak ka Rahasya Chintan
Author(s): Bhuvanbhanusuri
Publisher: Divya Darshan Trust

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Page 22
________________ यह बाह्य पूजा धर्म अभ्यन्तर धर्म बन जाता है । अभ्यन्तर धर्म उपस्थित करेंगे, तभी धर्म का प्रभाव कार्यशील बनेगा। (१) दायें-बायें अंगूठे पर तिलक जल भरी संपुट पत्र मां, युगलिक नर पूजंत । ऋषभ चरण-अंगूठडे, दायक भवजल अन्त ॥ ऐसा माना जाता है कि शरीर के अंग के छोर से एक प्रकार का विद्युतीय प्रभाव बहता रहता है । इस हिसाब से हम प्रभु के चरण अंगूठे पर तिलक करते हुए अंगुली से छूते है, तब प्रभु में से परमात्मा के अंश का करंट हमारे अन्दर बहने लगता है । अंश अर्थात परमात्म स्वरूप की ओर द्रष्टि । इसीलिये तिलक करते हुए यह भावना रखनी है कि प्रभु ! आपके Jain Education Internationat Private Personal Use Onlyww.jainelibrary.org

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