Book Title: Ashtaprakari Navang Tilak ka Rahasya Chintan
Author(s): Bhuvanbhanusuri
Publisher: Divya Darshan Trust

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Page 20
________________ पद पाऊं । पर वस्तुरूप आहार के लिये मेहनत करके मैं थक गया हूं । ज्यों-ज्यों इस भावना के सुसंस्कार पैदा होंगे, त्यों-त्यों आहार संज्ञा और रस संज्ञा पर घृणा होती जाएगी। (८) फल पूजा अष्ट कर्मदल चूरवा, आठमी पूजा सार । प्रभु आगल फल पूजतां, फल थी फल निर्धार । ___ आठवीं फलपूजा में यह भावना करनी है की, प्रभु ! फल बीज की अन्तिम पक्व अवस्था है । (बीज में से अंकुर, पत्ते, महोर आदि बीच की अवस्थायें है । फल के बाद आगे कुछ पैदा नहिं होने वाला, इसीलिये अन्तिम पक्व अवस्था है ) इसी तरह मुझे भी मेरी आत्मा की अन्तिम पक्व अवस्था यानी परमात्म-दशा प्राप्त कराईये । इसके लिये मेरी सांसारिक पदार्थों की इच्छा की अवस्था को अन्तिम अवस्था बना दीजिये, Jain Education Internationat Privatlersonal Use Onlyww.jainelibrary.org

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